दिल्ली। लोन के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा,धन का एक हिस्सा बैंक के बजाय कैश के जरिए किया गया है, इसका मतलब यह कतई नहीं है, केवल बैंकिंग माध्यम से हस्तांरित राशि को ही प्रमाणिक माना जाएगा। जब वचन पत्र में पूरे लेन-देन का जिक्र किया गया हो। दस्तावेजी प्रमाण का अभाव के चलते नकद लेनदेन को रद्द नहीं किया जा सकता।
केरल हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच में सुनवाई हो रही थी। याचिकाकर्ता द्वारा प्रतिवादी को दी गई लोन की राशि को 30.8 लाख रुपये से घटाकर ₹22 लाख कर दिया गया था। यह इसलिए कि 8.8 लाख रुपये की अंतर राशि बैंकिंग माध्यम से नहीं, बल्कि कैश के माध्यम से दी गई थी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि हाई कोर्ट ने दूसरे पक्ष के हस्ताक्षरित वचन पत्र को स्वीकार नहीं किया, जिसमें उसने 30.8 लाख रुपये प्राप्त करने की बात स्वीकार की।
सुप्रीम कोर्ट ने दी वचन पत्र की प्रधानता पर बल
मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वचन पत्र की प्रधानता पर बल देते हुए कहा, जब एक बार इसकी प्रमाणिकता को स्वीकार कर लिया जाता है, तब लोन के संबंध में कानूनी धारणा बन जाती है। इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। प्रतिवादी पक्ष ने वचन पत्र में याचिकाकर्ता से 30.8 लाख रुपये की पूरी राशि प्राप्त करने की बात स्वीकार कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मौखिक साक्ष्य दीवानी मामलों में प्रमाण का एक वैध और विश्वसनीय रूप है। वाणिज्यिक लेनदेन में नकदी घटकों को केवल रसीदों या बैंकिंग रिकॉर्ड के अभाव में नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। डिवीजन बेंच ने कहा कि यह सामान्य सी बात है कि धन के लेन-देन में कैश के जरिए भी लेन-देन किया जाता है। ऐसे लेन-देन को किसी लिखित दस्तावेज व बैंक ट्रांजेक्शन के माध्यम से साबित नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में इस निष्कर्ष पर भी नहीं पहुंचा जा सकता कि नकद लेनदेन के जरिए राशि देने वाले ने राशि नहीं चुकाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियमों का हवाला देते हुए कहा,यह साबित करने का दायित्व प्रतिवादी पक्ष का है, इस तरह की कोई राशि नहीं दी गई थी।
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सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि जो व्यक्ति कैश देता है, स्वाभाविक रूप से उसके पास कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं रहता। कुछ एक मामले में ऐसे भी होता है कि नकद लेनदेन में रसीद लिखा ली जाए। रसीद ना होने की स्थिति में इस बात से भी नकारा नहीं जा सकता कि पक्षकारों के बीच नकद लेनदेन हुआ था।








