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यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ पर FIR की मांग वाली याचिका खारिज
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दिल्ली। यूपी के लखनऊ जिला कोर्ट ने सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग को लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया है। पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने विधानसभा चुनाव के दौरान झूठे चुनावी हलफनामा दाखिल करने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। उन्होंने अदालत से पुलिस को मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के खिलाफ भारतीय दंड संहिता IPC की धारा 176, 177, 181 और 199 के तहत जानबूझकर झूठा बयान देने के लिए FIR दर्ज करने, निर्देश देने की मांग की थी।

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पूर्व आईपीएस अफसर ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि योगी आदित्यनाथ ने 2009, 2014 और 2017 के चुनावी हलफनामों में अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की जानकारी छिपाई थी। पूर्व आईपीएस ने अपनी याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 ए को भी शामिल करने की मांग की थी। इस अधिनियम में झूठे हलफनामा दायर करने पर दंड का प्रावधान है। मामले की सुनवाई के बाद अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पूर्व आईपीएस अफसर की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, दंड प्रक्रिया संहिता CrPC की धारा 195 (अब BNSS 2023 की धारा 215) के तहत इन आरोपों पर FIR दर्ज नहीं की जा सकती।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, CrPC की धारा 195 के अनुसार आवेदक द्वारा उल्लेख की गई धाराएं IPC की धाराएं 176, 177, 181 और 199 उस दायरे में आती हैं, जिसमें किसी भी अपराध का संज्ञान केवल संबंधित अदालत, अधिकारी, लोक सेवक की लिखित शिकायत पर ही लिया जा सकता है।

शिकायत दर्ज करने का अधिकार केवल चुनाव आयोग के पास


जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 125 ए के संबंध में कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले का हवाला दिया है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 125 ए और IPC की धारा 176, 177 के तहत अपराध गैर-संज्ञेय हैं। इन अपराधों के संबंध में शिकायत दर्ज करने का अधिकार केवल चुनाव आयोग के पास है।

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हलफनामों में गलत जानकारी देने का आरोप


पूर्व आईपीएस अफसर द्वारा उठाया गया मामला CrPC की धारा 195/BNSS की धारा 215 से संबंधित है। इस पर अदालत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश नहीं दे सकती।पूर्व आईपीएस अफसर ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर कैंट (2008), इटवा (2004, 2005) और मोहना (2004) में दर्ज FIR से संबंधित कुछ मामलों को छुपाया था। मुख्यमंत्री ने चुनाव आयोग को फॉर्म 26 के तहत सौंपे गए हलफनामों में अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों का सही विवरण नहीं देकर गलत जानकारी दी थी।


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