बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में सामने आया एनजीओ घोटाला राज्य के अब तक के सबसे बड़े घोटालों में से एक माना जा रहा है। आरोप है कि राज्य के पूर्व मुख्य सचिव समेत 11 वरिष्ठ अधिकारियों ने मिलकर फर्जी संस्थान बनाकर सरकारी खजाने से करीब 1000 करोड़ रुपये का गबन किया। इस मामले की गूंज हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक रही और अब हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि मामले की जांच सीबीआई ही करेगी। अदालत ने अपने पुराने आदेश को जारी रखते हुए कहा है कि सच तक पहुँचने के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच ज़रूरी है।
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कैसे सामने आया घोटाला?
यह मामला समाज कल्याण विभाग के अधीन चल रहे राज्य स्रोत नि:शक्तजन संस्थान से जुड़ा है। आरोप है कि लंबे समय तक इस संस्थान को एक एनजीओ के रूप में इस्तेमाल किया गया और सरकारी फंड को बंदरबांट कर अफसरों ने निजी हित साधे। रायपुर निवासी शासकीय कर्मचारी कुंदन सिंह ने अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर के जरिए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग की।
याचिका में कहा गया कि कई आईएएस और राज्य सेवा के अफसरों ने मिलकर फर्जी कागजात तैयार किए, काल्पनिक कर्मचारियों को वेतन दिखाया और मशीनों व उपकरणों की खरीद में करोड़ों रुपये खर्च बताकर फर्जी बिल बनाए। याचिकाकर्ता ने अपने दावों के समर्थन में दस्तावेज भी कोर्ट में पेश किए।
हाईकोर्ट का पहला फैसला और सीबीआई एफआईआर
बिलासपुर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच – तत्कालीन जस्टिस प्रशांत मिश्रा और जस्टिस पीपी साहू – ने 2020 में सुनवाई करते हुए मामले की गंभीरता को देखते हुए सीबीआई जांच का आदेश दिया था। आदेश के बाद सीबीआई, जबलपुर ने एफआईआर RC2222020A0001 दर्ज कर जांच शुरू भी कर दी।
लेकिन जांच की शुरुआत के बाद ही आरोपी अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने अस्थायी तौर पर सीबीआई की जांच पर रोक लगाते हुए मामला फिर से बिलासपुर हाईकोर्ट को वापस भेज दिया और कहा कि सभी पक्षों को सुनने के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाए।
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जांच रिपोर्ट में हुई गड़बड़ियों की पुष्टि
हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए तत्कालीन मुख्य सचिव को जांच कराने का आदेश दिया था। मुख्य सचिव अजय सिंह ने एक कमेटी गठित की और इसकी रिपोर्ट अदालत के समक्ष रखी। इस रिपोर्ट में साफ लिखा गया कि विभाग में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा हुआ है।
जांच में कई गंभीर गड़बड़ियां सामने आईं –
- बिना अनुमति लाखों रुपये अग्रिम निकाले गए।
- करोड़ों रुपये अन्य खातों में ट्रांसफर कर दिए गए, लेकिन इसका कोई अनुमोदन नहीं था।
- सालों तक कैशबुक और अंतिम शेष राशि का मिलान नहीं किया गया।
- कुछ खर्चों के तो बिल और वाउचर तक उपलब्ध नहीं थे।
रिपोर्ट में लगभग 31 तरह की अनियमितताओं का जिक्र किया गया और प्रारंभिक तौर पर 5.67 करोड़ रुपये का सीधा फर्जीवाड़ा साबित हुआ।
किन अधिकारियों पर आरोप?
याचिका में जिन अधिकारियों के नाम सामने आए, उनमें राज्य के वरिष्ठ आईएएस शामिल हैं। इनमें आलोक शुक्ला, विवेक ढांढ, एमके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल, पीपी सोती के साथ-साथ राज्य सेवा संवर्ग के कई अधिकारी – सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा शामिल बताए गए।
इन सभी पर आरोप है कि इन्होंने फर्जी एनजीओ के नाम पर योजनाओं से करोड़ों की राशि निकालकर मनमाने ढंग से खर्च दर्शाया और सरकारी पैसों का हेरफेर किया।
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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने जब इस मामले की सुनवाई की तो कहा कि हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुने बिना सीबीआई जांच का आदेश दिया था। इसलिए पुराने आदेश को रद्द कर दिया गया और कहा गया कि सभी आरोपियों को नोटिस जारी कर उनकी दलीलें भी सुनी जाएं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जांच रोकने का मतलब आरोपों को खारिज करना नहीं है।
हाईकोर्ट का नया आदेश – सीबीआई ही करेगी जांच
सभी पक्षों को सुनने के बाद अब हाईकोर्ट ने फिर से वही आदेश दोहराया है। जस्टिस पीपी साहू और जस्टिस संजय कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने कहा कि “इस मामले में इतने बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हुई हैं कि सच्चाई सामने लाने के लिए सीबीआई जैसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराना ही उचित है।”
अदालत ने साफ निर्देश दिया कि सीबीआई पंजीकृत एफआईआर पर आगे की कार्रवाई करेगी और यदि किसी स्थान पर एफआईआर दर्ज नहीं हुई है तो 15 दिनों के भीतर संबंधित विभागों से मूल दस्तावेज जब्त करेगी।
फर्जी एनजीओ के जरिए गबन का खेल
जांच और ऑडिट रिपोर्ट से यह भी सामने आया कि अफसरों ने एक एनजीओ को सामने रखकर सरकारी योजनाओं से फंड लिया। कागजों पर अस्पताल और मशीनरी खरीदी दिखा दी गई, जबकि जमीनी हकीकत यह थी कि ऐसा कोई अस्पताल अस्तित्व में ही नहीं था।
याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ने कोर्ट में कहा कि उन्हें खुद उस संस्थान में कर्मचारी दिखाकर फर्जी वेतन स्लिप बनाई गई। आरटीआई में खुलासा हुआ कि करोड़ों की मशीनें खरीदी दिखाईं गईं, लेकिन मौके पर कुछ भी नहीं मिला।
क्यों ज़रूरी है सीबीआई जांच?
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह मामला सुनियोजित और संगठित अपराध का उदाहरण है। इसमें उच्च स्तरीय अफसरों की मिलीभगत और बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताएं शामिल हैं। यदि राज्य की एजेंसी जांच करेगी तो निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं। इसलिए केवल सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसी ही स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित कर सकती है।
आगे की प्रक्रिया
हाईकोर्ट के ताज़ा आदेश के बाद सीबीआई अब सक्रिय हो गई है। एजेंसी राज्य भर में संबंधित दफ्तरों, संस्थानों और विभागों से मूल रिकॉर्ड जब्त करेगी। साथ ही आरोपियों से पूछताछ की तैयारी भी होगी। अदालत ने साफ किया है कि जांच को समयबद्ध ढंग से पूरा किया जाए।
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नतीजा क्या निकलेगा?
हज़ार करोड़ रुपये का यह घोटाला छत्तीसगढ़ की प्रशासनिक व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। जिन अफसरों पर जनता की भलाई का जिम्मा था, उन्हीं पर सरकारी धन का दुरुपयोग करने का आरोप है। अब सारी निगाहें सीबीआई पर हैं कि जांच में क्या निकलता है और क्या वाकई जिम्मेदारों को सज़ा मिल पाएगी।








