बिलासपुर। ब्याह होकर जब ससुराल आई और आगे पढ़ाई की इच्छा जताई तब पति ने सहजता के साथ लिया, उसे पढ़ाया लिखाया और इस काबिल बनाया कि वह अपने पैरों पर खड़ी हो गई। पढ़ाई और करियर की तलाश के बीच उनका एक बेटा भी हुआ। बेटा शारीरिक रूप से अक्षम है। 90 फीसदी दिव्यांग। बेटे की परवरिश के बीच मां की नौकरी लग गई। ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के पद पर काबिज हो गई। आप सोच रहे होंगे, पति और बच्चे की जिम्मेदारी संजीदगी के साथ निभा रही होगी। जी नहीं, पति और दिव्यांग बेटे को छोड़कर ससुराल चली गई। गजब तो तब हो गया जब फैमिली कोर्ट ने दिव्यांग बेटे के भरण पोषण की जिम्मेदारी उठाने का निर्देश दिया तो सहजता के साथ स्वीकार करने के बाद हाई कोर्ट पहुंच गई। फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती दे डाली।
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चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने अपने फैसले में लिखा है, बच्चे की जिम्मेदारी माता पिता दोनों की बराबर की है। बच्चे की जिम्मेदारी उठाने और भरण पोषण से इंकार नहीं कर सकते। मां की याचिका खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने दिव्यांग बेटे के भरण पोषण के लिए प्रति महीने पांच हजार रुपये देने का निर्देश दिया है। पति की याचिका पर फैमिली कोर्ट ने सरकारी नौकरी कर रही पत्नी को बच्चे के भरण पोषण की जिम्मेदारी संभालने और हर महीने पांच हजार रुपये देने का निर्देश दिया था। मां ने सहजता के साथ स्वीकार करने के बजाय जिम्मेदारी से बचते हुए फैमिली कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट ने चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने फैमिली कोर्ट के आदेश को यथावत रखते हुए मां की अपील को खारिज कर दिया है। बेंच ने कहा, बच्चे के प्रति माता-पिता की समान जिम्मेदारी होती है।
बिलासपुर निवासी व्यक्ति ने बच्चे के भरण पोषण के लिए फैमिली कोर्ट में याचिका लगाई थी। इसमें बताया कि उनकी शादी 9 फरवरी 2009 को हुई थी। पत्नी ने शादी के बाद एमएससी पूरी की और ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के पद पर नियुक्त हुईं। उनका एक 7 साल का बेटा है, जो 90 फीसदी दिव्यांग है। 3 नवंबर 2017 को बच्चे को छोड़कर पत्नी अपने मायके गई और उसके बाद ससुराल वापस नहीं लौटी। पत्नी सरकारी नौकरी में है, उसकी सैलरी करीब 30 हजार रुपए है। पत्नी अपने बेटे की जिम्मेदारी से भाग रही है, जबकि उनका बेटा दिव्यांग है और उसे विशेष देखभाल की जरूरत है। याचिका मंजूर करते हुए फैमिली कोर्ट ने ग्रामीण कृषि विकास विस्तार अधिकारी के पद पर कार्यरत महिला को बेटे के भरण-पोषण के लिए हर महीने 5 हजार रुपए देने का आदेश दिया था।
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फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ महिला ने हाई कोर्ट में अपील की। तर्क दिया कि पति अक्षता इंफ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर हैं। आर्थिक रूप से सक्षम हैं। उनके पास कृषि भूमि और कार भी है। वह खुद अपने बेटे का भरण पोषण कर सकते हैं। यह भी कहा कि पति ने अपनी आय के बारे में सही जानकारी नहीं दी है और उन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति छिपाई है। हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और सभी दस्तावेजों की जांच करने के बाद फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। हाई कोर्ट ने पाया कि बच्चा 90% दिव्यांग है, जिसके पास आय का कोई साधन नहीं है। मां की सैलरी लगभग 29,964 रुपए है और उसने खुद कहा है कि कभी बेटे की जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ा। बच्चे के भरण-पोषण की जिम्मेदारी माता-पिता दोनों की होती है।








