
रायपुर। 638 करोड़ के NGO घोटाले की जांच को लेकर आज से मूल दस्तावेजों को जब्त करने का काम सीबीआई करेगी। पांच साल पहले भोपाल में दर्ज FIR रायपुर सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया है। इस घोटाले में छत्तीसगढ़ के 11 आईएएस व राज्य सेवा संवर्ग के अफसर फंसे हुए हैं।
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सरकारी खजाने को लूटने के लिए छत्तीसगढ़ के 11 आईएएस व राज्य सेवा संवर्ग के अफसरों ने मिलकर एनजीओ बनाया। नाम रखा राज्यश्रोत (निःशक्तजन) संस्थान SRC । SRC में हुई करोड़ों की गड़बड़ी, 30 कर्मचारियों के वेतन में हुए गवन व अनियमितताओं को लेकर 5 साल बाद सीबीआई आज, गड़बड़ियों से सम्बंधित मूल दस्तावेज जब्त करेगी। हाई कोर्ट के फैसले और सीबीआई को दिए निर्देश के बाद सीबीआई की टीम शुक्रवार को समाज कल्याण संचालनालय पहुंची थी। संचालक को दस्तावेज की लिस्ट सौंपकर ओरिजिनल दस्तावेज देने की बात कही, जिसके बाद संचालक ने दस्तावेज सोमवार को सीबीआई को देने की बात कही थी। विभागीय अधिकारी ने इसकी पुष्टि की है। चर्चा इस बात की भी हो रही है कि एसआरसी के बहुत सारे दस्तावेज मिसिंग हैं।
CBI के FIR में इन अफसरों के नाम
हाई कोर्ट के डीविजन बेंच के पूर्व के निर्देश पर 5 फरवरी 2020 को भोपाल सीबीआई द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में विवेक ढांढ, एमके राउत, आलोक शुक्ला, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल (सभी आईएएस), सतीष पांडेय, पीपी सोती, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, सतीश पांडेय और पंकज वर्मा के नाम हैं।
- टाइमलाइन-SRC और PRRC NGO घोटाले
- 16 नवंबर 2004 कागजों पर दिव्यांगों के लिए SRC-PRRC नाम से 2 संस्थाएं बनाई गईं। 2020 तक घोटाला किया।
- 2004 NGO का संचालन सरकारी विभाग जैसा। 2020 तक कर्मचारियों की 2 जगहों से वेतन निकाला गया।
- 2012 कुंदन ठाकुर 2008 से नौकरी कर रहे थे। 4 साल बाद पता चला उनके नाम से डबल वेतन निकल रहा। कुंदन ने RTI के जरिए जानकारी निकाली। रायपुर में 14, बिलासपुर में 16 अन्य कर्मचारी भी 2 जगह से वेतन पा रहे थे।
- 28 सितंबर 2018 मुख्य सचिव अजय सिंह ने NGO में नियमित बैठक और ऑडिट करने के निर्देश दिए।
- 30 जनवरी 2020 हाईकोर्ट ने कुंदन की याचिका को जनहित याचिका (PIL) में तब्दील किया। CBI जांच के आदेश दिए।
- 25 सितंबर 2025 बिलासपुर हाईकोर्ट ने अब दोबारा CBI जांच के आदेश दिए। सैकड़ों करोड़ का घोटाला हुआ है।
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ये हैं NGO घोटाले के आरोपी
- विवेक ढांढ (मुख्य सचिव रैंक)
- एमके राउत (मुख्य सचिव रैंक)
- डॉ. आलोक शुक्ला (अतिरिक्त मुख्य सचिव, शिक्षा विभाग)
- सुनील कुजूर (प्रमुख सचिव, समाज कल्याण)
- बीएल अग्रवाल (प्रमुख सचिव, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण)
- सतीश पांडे (उप सचिव, वित्त)
- पीपी श्रोती (संचालक, पंचायत एवं समाज सेवा संचालनालय)
स्कैम में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी
- राजेश तिवारी
- सतीश पांडेय
- अशोक तिवारी
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कागजों में सबकुछ, मौके पर कुछ भी नहीं
यह भी दावा किया गया, पीआरआरसी में प्रतिदिन लगभग 22 से 25 कृत्रिम अंगों का निर्माण किया जा रहा है और 2012 से लगभग 4314 व्यक्तियों को कृत्रिम अंग और निःशुल्क उपचार प्रदान किया गया है। लेकिन इसके समर्थन में एक भी दस्तावेज संलग्न नहीं किया गया है जिसमें कृत्रिम अंगों के निर्माण के लिए मशीनों की खरीद, कृत्रिम अंगों के निर्माण और उपचार प्रदान करने के स्थान आदि का उल्लेख हो। राज्य का यह भी कहना है कि राज्य में कोई अन्य पीआरआरसी नहीं है। बिलासपुर स्थित पीआरआरसी के कर्मचारियों को पारिश्रमिक के भुगतान को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, न्यायालय द्वारा जारी निर्देश के अनुसरण में प्रस्तुत रिपोर्ट और हलफनामे से राज्य प्राधिकारियों ने इनकार नहीं किया है और इस प्रकार याचिकाकर्ता द्वारा रिट याचिका में लगाए गए आरोपों को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है। उपर्युक्त परिस्थितियों और वित्त सचिव द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट और मुख्य सचिव के हलफनामे के बावजूद, प्राधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
सीएस की रिपोर्ट में यह सब
प्रस्तुत जांच रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से दर्ज किया गया है कि वित्तीय अनियमितताएँ की गई हैं, पीआरआरसी में तैनात कर्मचारियों को वेतन के भुगतान के बारे में स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है; एसआरसी का पिछले 14 वर्षों से ऑडिट नहीं किया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट और हलफनामे के आधार पर, न्यायालय ने प्रथम दृष्टया सार्वजनिक धन के दुरुपयोग और गबन से संबंधित आरोपों में तथ्य पाया और पाया कि वित्तीय अनियमितता का पता लगाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है, ताकि सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करने वाले व्यक्तियों का पता लगाया जा सके। न्यायालय ने एफआईआर दर्ज करने और जांच करने के साथ-साथ संलिप्त अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करने के लिए मामले को सीबीआई को सौंपना उचित समझा।
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कागजों में दिखाया भर्ती, हर मगीने निकल रहा था वेतन
याचिकाकर्ता के वकील देवर्षि ठाकुर ने कहाकि प्रतिवादी राज्य प्राधिकारियों ने अपने रिटर्न में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि याचिकाकर्ता पीआरसीसी का कर्मचारी नहीं था, फिर भी उसके नाम पर वेतन कैसे निकाला जा रहा है, जबकि उसे पीआरआरसी में सहायक ग्रेड-II के रूप में कार्यरत दिखाया जा रहा है, इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि पीआरआरसी में याचिकाकर्ता और अन्य की, भर्ती हुए बिना वेतन कैसे वितरित किया जा सकता था।
कागज में संस्थान और करोड़ों का फर्जीवाड़ा
जो संस्थान अस्तित्व में नहीं, करोड़ो रूपये किया जारी, उन्होंने राज्य की ओर से दाखिल रिटर्न का हवाला देते हुए प्रस्तुत किया कि करोड़ों रुपये उक्त संस्थान के पक्ष में जारी किए गए हैं, जो कभी अस्तित्व में ही नहीं था और इस प्रकार स्व-चेक के माध्यम से इसे निकालकर सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये का गबन किया गया है।
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17 कर्मचारियों के नाम पर निकलता रहा हर महीने वेतन
PRRC की स्थापना और संचालन के लिए कुल 17 पद स्वीकृत किए गए थे, हालाँकि, इन स्वीकृत पदों को कानून के अनुसार नियमित भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से भरे जाने को दर्शाने वाला कोई भी विज्ञापन, नियुक्ति आदेश आदि दस्तावेज़ रिकॉर्ड में नहीं लाया गया है। राज्य संसाधन केंद्र (SRC) द्वारा कर्मचारियों के वेतन भुगतान के लिए PRRC को लाखों रुपये प्रदान किए जाते हैं। इसके संचालन, उपकरणों की खरीद आदि के साथ-साथ यात्रा भत्ता, महंगाई भत्ता आदि के लिए भी विभिन्न वर्षों में राशि स्वीकृत और जारी की गई। कोई सीधा भुगतान नहीं किया गया है।








