दिल्ली। भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे आराेपी को सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत देते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट के सवालों को लेकर नाराजगी जताई हाई कोर्ट ने असामान्य आदेश पारित किया है। जमानत पर फैसला देने के बजाय पुलिस से पूछा कि याचिकाकर्ता आरोपी को चार साल तक क्यों गिरफ्तार नहीं किया गया। पुलिस पकड़ से कैसे दूर रहा।
अग्रिम जमानत याचिका पर जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। डिवीजन बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट को या तो आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका को मंजूर करना था या फिर उसे रद्द कर देना था। डिवीजन बेंच ने कहा जब चार साल तक आरोपी की गिरफ्तारी पुलिस ने नहीं की तो यह जमानत देने का अपने आप में मजबूत आधार था।
ये है मामला
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, 7A और भारतीय दंड संहिता IPC की धारा 120 B के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया है। याचिकाकर्ता आरोपी ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत याचिका दायर कर जमानत देने की मांग की थी। हाई कोर्ट ने जमानत याचिका पर फैसला करने के बजाय डीजीपी को नोटिस जारी कर शपथ पत्र के साथ जवाब पेश करने कहा था कि आरोपी के खिलाफ चार्जशीट क्यों दायर नहीं की गई। आरोपी की अब तक गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई है। याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट के इस आदेश को अपने अधिवक्ता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर चुनौती देने के साथ ही अग्रिम जमानत की गुहार लगाई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने उठाया सवाल
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से पूछा कि 2021 में पुलिस ने FIR दर्ज किया है। चार साल बाद 2025 में अग्रिम ज़मानत क्यों मांगी जा रही है। इस पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने डिवीजन बेंच को बताया कि याचिकाकर्ता को लगा कि उसके ख़िलाफ़ कोई मामला नहीं है। राज्य शासन ने इसी मामले में निलंबन को रद्द करते हुए 27 सितंबर, 2023 को सेवा में बहाल कर दिया था। इसी बीच आर्थिक अपराध शाखा से पेशी का नोटिस आने के बाद उसे गिरफ्तारी का डर हुआ। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता का जवाब सुनने के बाद डिवीजन बेंच ने कहा कि सह-आरोपी, जिस पर रिश्वत लेने का सीधा आरोप था, उसको पहले ही अग्रिम जमानत मिल चुकी है। ऐसे में चार साल तक गिरफ्तारी न होना आरोपी के पक्ष में एक महत्वपूर्ण तथ्य था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सशर्त अग्रिम जमानत का आदेश जारी किया है।








