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High Court News: पॉक्सो POCSO आरोपी को जमानत देने से पहले पीड़िता का पक्ष सुनना जरुरी, हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को किया रद्द
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कोलकाता। कोलकाता हाई कोर्ट ने पॉक्सो POCSO के एक प्रकरण में ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को जमानत देने के फैसले को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को ज़मानत देते समय पीड़िता या उसके प्रतिनिधि को सुनवाई का अवसर नहीं दिया। इसके चलते भारतीय नागरिक सुरक्षा सहिंता (BNSS) 2023 की धारा 483(2) का उल्लंघन हुआ है।

सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा है, इस मामले में पॉक्सो के आरोपी को जमानत देते समय निचली अदालत ने पीड़िता या उसके प्रतिनिधि को जमानत आवेदन की जानकारी नहीं दी। इसके चलते पीड़िता या प्रतिनिधि अपनी बात कोर्ट के समक्ष नहीं रख पाए। पीड़िता या प्रतिनिधि के सुनवाई में हिस्सा लेने के अधिकार का सीधेतौर पर हनन हुआ है। कानून में व्यवस्था है कि पाक्सो के आरोपी की जमानत आवेदन पर सुनवाई से पहले पीड़िता या उसके प्रतिनिधि को सूचना दी जानी है, उसका पक्ष सुना जाना है। इसके बाद अदालत को अपना फैसला सुनाना है। इस मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ है। कोर्ट ने कहा, ऐसी स्थिति में निचली अदालत द्वारा पारित जमानत आदेश को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दिए गए जमानत को तीन सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया है। इस बीच आरोपी को ट्रायल कोर्ट के समक्ष सरेंडर करने और नई जमानत आवेदन दायर करने का निर्देश दिया है।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने सुनवाई के दौरान सिंगल बेंच के समक्ष तर्क पेश करते हुए कहा, यौन अपराध में पीड़िता को ज़मानत सुनवाई में शामिल होने का अवसर दिया जाना आवश्यक है। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने यह अवसर दिए बिना ज़मानत मंज़ूर कर ली जो कानून के विपरीत है। आरोपी की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता ने कहा, जमानत आदेश को निरस्त करना और ज़मानत रद्द करना दो अलग अवधारणाएं हैं। ज़मानत रद्द करने के लिए नए हालात मसलन सबूतों से छेड़छाड़, गवाहों को धमकाना आदि होने चाहिए।

दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद सिंगल बेंच ने कहा कि यहां विषय आरोपी को जमानत देने से पहले पीड़िता को सुनवाई में शामिल करने या ना करने को लेकर है। कोर्ट ने कहा, BNSS की धारा 483(2) में यह विशेष प्रावधान है, नाबालिगों से जुड़े यौन अपराध के मामलों में आरोपी के ज़मानत आवेदन पर सुनवाई के समय पीड़िता या उसका प्रतिनिधि मौजूद होना चाहिए। इस मामले में ऐसा नहीं हुआ है। लिहाजा BNSS की धारा 483(2) का उल्लंघन हुआ है।


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