बिलासपुर। हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि सिर्फ चेन पुलिंग करना अपराध नहीं है, जब तक यह साबित न हो कि इसे बिना किसी उचित और पर्याप्त कारण के किया गया था। इस निर्णय से एक रेल कर्मचारी को बड़ी राहत मिली है, जिसे पहले चेन पुलिंग के आरोप में दोषी ठहराया गया था।
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क्या है पूरा मामला?
15 जुलाई 2010 को कोरबा–यशवंतपुर एक्सप्रेस (ट्रेन नंबर 2252) में हेमूनगर निवासी रेलकर्मी ऑस्टिन हाइड पर आरोप लगा था कि उन्होंने बिलासपुर स्टेशन पर दो बार अलार्म चेन खींची। आरोप यह भी था कि उन्होंने यह कदम अपने परिवार की महिला सदस्यों को सामान के साथ ट्रेन में चढ़ाने के लिए उठाया, जिससे ट्रेन संचालन में देरी हुई।
हालांकि उस समय हाइड ड्यूटी पर नहीं थे बल्कि यात्री के रूप में यात्रा कर रहे थे। विभागीय जांच में उन्हें दोषी ठहराया गया और 11 सितंबर 2012 को उन्हें दो साल के लिए निचले वेतनमान पर पदावनत करने की सजा सुनाई गई।
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लंबी कानूनी लड़ाई
- हाइड ने विभागीय फैसले के खिलाफ अपील और रिवीजन दायर की, लेकिन दोनों खारिज कर दी गईं।
- इसके बाद मामला केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) पहुंचा, जिसने अक्टूबर 2023 में विभागीय कार्रवाई को बरकरार रखा।
- इसके बाद हाइड ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
हाई कोर्ट का फैसला
मामले की सुनवाई जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डिवीजन बेंच में हुई। कोर्ट ने पाया कि—
- आरोप पत्र अस्पष्ट और दोषपूर्ण था।
- यह स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं था कि चेन पुलिंग बिना किसी उचित कारण के की गई थी।
- रेलवे अधिनियम 1989 की धारा 141 के तहत अपराध तभी माना जाएगा जब चेन पुलिंग का कोई वाजिब कारण न हो।
डिवीजन बेंच ने कहा—
“जब तक यह साबित न हो कि चेन पुलिंग बिना किसी उचित कारण के की गई है, तब तक यह न तो कदाचार है और न अपराध।”
इस आधार पर कोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया और रेलकर्मी ऑस्टिन हाइड को राहत प्रदान की।








