
छत्तीसगढ़ में एक ऐसा भी स्कैम हुआ है जिसने सरकार से लेकर पूरे सिस्टम को हीला कर रख दिया है | IAS और राज्य सेवा संवर्ग के 11 अफ़सरों ने कागज में आलीशान दफ्तर बना लिया, कर्मचारियों की भर्ती कर ली और सरकारी खजाने से एक हज़ार करोड़ रुपये का वारा न्यारा कर दिया.
सुनियोजित और संगठित अपराध का खुलासा RTI से हुआ. कुंदन सिंह ने अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर के माध्यम से हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की. मामले की सुनवाई के बाद बिलासपुर हाई कोर्ट के डिविज़न बेंच बी CBI जांच का आदेश दिया. CBI ने अपना काम शुरू किया ही था कि घपले घोटाले में शामिल अफ़सर सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जाँच पर रोक लगाते हुए मामले को वापस हाई कोर्ट भेज दिया. कानूनी दांव पेंच लगाने वाले घोटालेबाज अफ़सरों को हाई कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है. डिविज़न बेंच ने पूरे के फ़ैसले पर सहमति जताते हुए सीबीआई जाँच का आदेश दिया है.
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एक हज़ार करोड़ रुपये के एनजीओ घोटाला में आईएएस अफसरों ने गजब किया है। राज्य निःशक्तजन स्रोत संस्थान ने नाम से एनजीओ बनाया और जी खोलकर घोटाले को अंजाम दिया है। चीफ सिकरेट्री के निर्देश पर हुए जांच में एक दो नही 31 गड़बड़ियां सामने आई है। फर्जीवाड़े का इंतहा देखिए, सरकारी विभाग का सोसाइटी प्रबंधन कर रही थी। जो काम कभी नहीं हुआ वह सब कुछ किया गया. हाई कोर्ट की गम्भीर टिप्पणी से साफ समझा जा सकता है कि अफसरों ने सरकारी खजाने को जी भरकर लूटा है।
हाई कोर्ट के फैसले में कड़ी टिप्पणी से साफ है, जिम्मेदार अफसरों ने जमकर भ्र्ष्टाचार किया है। एक बड़ी गड़बड़ी ये कि सरकारी विभाग का संचालन सोसाइटी को करना बताया है। जाँच रिपोर्ट में एक बड़ी गड़बड़ी सामने आई. कर्मचारियों के वेतन का भुगतान इसलिए नहीं किया गया क्योंकि ई-कोड कभी आवंटित या जनरेट ही नहीं किया गया. नकद राशि विभिन्न उद्देश्यों के लिए निकाल ली गई। एसआरसी एक सोसाइटी है. जबकि पीआरआरसी समाज कल्याण विभाग के अधीन एक सरकारी संस्था है, इसलिए यह असंभव और संदिग्ध है कि सोसाइटी सरकारी विभाग का प्रबंधन कैसे और क्यों करेगी। घोटालेबाज़ अफसरों ने यह अजूबा भी काग़ज़ों में करके दिखाया है.
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हाई कोर्ट में याचिका दायर होने के बाद खुली घोटाले की परतें
राज्य के विभिन्न जिलों में कई अनियमितताएँ की गई हैं और कई व्यक्तियों द्वारा योजनाबद्ध तरीके से संगठित होकर बड़ी मात्रा में धनराशि की हेराफेरी की गई है। याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ने वित्तीय अनियमितताओं/सार्वजनिक धन के गबन के आरोपों की जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) या किसी अन्य निष्पक्ष एजेंसी को निर्देश देने के लिए एक रिट याचिका दायर की थी. रिट याचिका में लगाए गए आरोपों की गंभीरता को देखते हुए, कोर्ट ने मुख्य सचिव को एक स्वतंत्र जांच करने और हलफनामा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
चीफ सिकरेट्री की रिपोर्ट में यह सब
प्रस्तुत जांच रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से दर्ज किया गया है कि वित्तीय अनियमितताएँ की गई हैं, पीआरआरसी में तैनात कर्मचारियों को वेतन के भुगतान के बारे में स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है; एसआरसी का पिछले 14 वर्षों से ऑडिट नहीं किया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट और हलफनामे के आधार पर, कोर्ट ने प्रथम दृष्टया सार्वजनिक धन के दुरुपयोग और गबन से संबंधित आरोपों में तथ्य पाया और पाया कि वित्तीय अनियमितता का पता लगाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है, ताकि सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करने वाले व्यक्तियों का पता लगाया जा सके। न्यायालय ने एफआईआर दर्ज करने और जांच करने के साथ-साथ संलिप्त अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करने के लिए मामले को सीबीआई को सौंपना उचित समझा।
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कागजों में दिखाया भर्ती, हर मगीने निकल रहा था वेतन
याचिकाकर्ता के वकील देवर्षि ठाकुर ने दस्तावेजी प्रमाण पेश करते हुए कोर्ट को बताया, राज्य प्राधिकारियों ने अपने रिटर्न में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि याचिकाकर्ता पीआरसीसी का कर्मचारी नहीं था, फिर भी उसके नाम पर वेतन कैसे निकाला जा रहा है, जबकि उसे पीआरआरसी में सहायक ग्रेड-II के रूप में कार्यरत दिखाया जा रहा है, इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि पीआरआरसी में याचिकाकर्ता और अन्य की, भर्ती हुए बिना वेतन कैसे वितरित किया जा सकता था।
कागज में संस्थान और करोड़ों का फर्जीवाड़ा
जो संस्थान अस्तित्व में नहीं, उसके नाम पर करोड़ो रूपये जारी कर वारा न्यारा कर दिया गया. अधिवक्ता देवर्षि ने राज्य की ओर से दाखिल रिटर्न का हवाला देते हुए प्रस्तुत किया कि करोड़ों रुपये उक्त संस्थान के पक्ष में जारी किए गए हैं, जो कभी अस्तित्व में ही नहीं था और इस प्रकार सेल्फ -चेक के माध्यम से इसे निकालकर सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये का गबन किया गया है।
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17 कर्मचारियों के नाम पर निकलता रहा हर महीने वेतन
PRRC की स्थापना और संचालन के लिए कुल 17 पद स्वीकृत किए गए थे, हालाँकि, इन स्वीकृत पदों को कानून के अनुसार नियमित भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से भरे जाने को दर्शाने वाला कोई भी विज्ञापन, नियुक्ति आदेश आदि दस्तावेज़ रिकॉर्ड में नहीं लाया गया है। राज्य संसाधन केंद्र (SRC) द्वारा कर्मचारियों के वेतन भुगतान के लिए PRRC को लाखों रुपये प्रदान किए जाते हैं। इसके संचालन, उपकरणों की खरीद आदि के साथ-साथ यात्रा भत्ता, महंगाई भत्ता आदि के लिए भी विभिन्न वर्षों में राशि स्वीकृत और जारी की गई। कोई सीधा भुगतान नहीं किया गया है।
सोसाइटी कैसे करेगी सरकारी विभाग का प्रबंधन
कर्मचारियों के वेतन का भुगतान इसलिए नहीं किया गया क्योंकि ई-कोड कभी आवंटित/जनरेट ही नहीं किया गया और नकद राशि विभिन्न उद्देश्यों के लिए निकाल ली गई। एसआरसी एक सोसाइटी है जबकि पीआरआरसी समाज कल्याण विभाग के अधीन एक सरकारी संस्था है, इसलिए यह असंभव और संदिग्ध है कि सोसाइटी सरकारी विभाग का प्रबंधन कैसे करती है।
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कगजो में सबकुछ, मौके पर कुछ भी नहीं
पीआरआरसी में प्रतिदिन लगभग 22 से 25 कृत्रिम अंगों का निर्माण किया जा रहा है और 2012 से लगभग 4314 व्यक्तियों को कृत्रिम अंग और निःशुल्क उपचार प्रदान किया गया है। लेकिन इसके समर्थन में एक भी दस्तावेज संलग्न नहीं किया गया है, जिसमें कृत्रिम अंगों के निर्माण के लिए मशीनों की खरीद, कृत्रिम अंगों के निर्माण और उपचार प्रदान करने के स्थान आदि का उल्लेख हो। राज्य का यह भी कहना है कि राज्य में कोई अन्य पीआरआरसी नहीं है। बिलासपुर स्थित पीआरआरसी के कर्मचारियों को पारिश्रमिक के भुगतान को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, कोर्ट द्वारा जारी निर्देश के अनुसरण में प्रस्तुत रिपोर्ट और हलफनामे से राज्य प्राधिकारियों ने इनकार नहीं किया है. और इस प्रकार याचिकाकर्ता द्वारा रिट याचिका में लगाए गए आरोपों को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है। उपर्युक्त परिस्थितियों और वित्त सचिव द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट और मुख्य सचिव के हलफनामे के बावजूद, प्राधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
सीबीआई जाँच की मांग का सरकार ने किया था विरोध
अतिरिक्त महाधिवक्ता ने सीबीआई जाँच की मांग का विरोध करते हुए कहा कि राज्य पुलिस इस उद्देश्य के लिए पूरी तरह से सक्षम है। मामला स्थानीय प्रकृति का है और इसका कोई अंतर-राज्यीय या अंतरराष्ट्रीय प्रभाव नहीं है जिससे सीबीआई द्वारा जाँच की आवश्यकता हो। संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय को सीबीआई द्वारा जाँच का निर्देश देने की शक्ति का प्रयोग केवल संयमित, सावधानीपूर्वक और सावधानी से किया जाना चाहिए।
रिट याचिका को हाई कोर्ट ने PIL में बदला
हाई कोर्ट ने रजिस्ट्री को मामले की जांच करने और उचित बेंच के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। रिट याचिका को उसके बाद PIL में परिवर्तित कर दिया गया। 30 जुलाई 2018 की कार्यवाही में, कोर्ट ने रिट याचिका में दिए गए तथ्यों और संबंधित पक्षों के अधिवक्ताओं के प्रस्तुतीकरण की सराहना करते हुए, मुख्य सचिव, छत्तीसगढ़ सरकार को रिट याचिका में लगाए गए आरोपों की स्वतंत्र जांच करने का निर्देश दिया। कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने चमेली चंद्राकर, जिला पुनर्वास अधिकारी, बिलासपुर के हलफनामे के साथ 1 अक्टूबर 2018 को मुख्य सचिव के हस्ताक्षर सहित जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की। जांच रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि सचिव, सामान्य प्रशासन और वित्त विभाग, छत्तीसगढ़ सरकार को जांच करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था। सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग और वित्त विभाग द्वारा जांच के तीन बिंदु तैयार करते हुए जांच शुरू की गई। सचिव ने अपनी रिपोर्ट में वित्तीय अनियमितताओं को स्वीकार किया है, तथा राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत लेखापरीक्षा रिपोर्ट से भी यह प्रतिबिंबित होता है कि कोई लेखा नहीं रखा गया है, व्यय करने के लिए कोई अनुमति नहीं ली गई है, आदि, यह देखा जा सकता है कि इस न्यायालय के समक्ष रिकार्ड में प्रथम दृष्टया सामग्री उपलब्ध है जो यह दर्शाती है कि इसमें भारी धनराशि।शामिल है, जिससे राज्य के खजाने को नुकसान हुआ है तथा राज्य सरकार ने इस संबंध में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
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कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, प्रत्येक सार्वजनिक पदधारी के आचरण की जाँच करते समय इन बातों को ध्यान में रखना अपेक्षित है। यह सामान्य बात है कि सार्वजनिक पदधारियों को कुछ शक्तियाँ सौंपी जाती हैं जिनका प्रयोग केवल जनहित में किया जाना है और इसलिए वे जनता के प्रति अपने पद को विश्वास में रखते हैं। उनमें से किसी के द्वारा भी सत्यनिष्ठा के मार्ग से विचलन विश्वासघात के समान है और उसे दबाने के बजाय उसके साथ कठोरता से पेश आना चाहिए। यदि आचरण अपराध के समान है, तो उसकी शीघ्र जाँच होनी चाहिए और प्रथम दृष्टया जिस अपराधी के विरुद्ध मामला बनता है, उसके विरुद्ध शीघ्रता से मुकदमा चलाया जाना चाहिए ताकि कानून की गरिमा बनी रहे और कानून का शासन सिद्ध हो। न्यायपालिका का कर्तव्य है कि वह कानून के शासन को लागू करे और इसलिए कानून के शासन के क्षरण से बचाए।
एक दो नहीं पूरी 31 गड़बड़ियां
याचिकाकर्ता और कुछ अन्य कर्मचारियों के नाम पर वेतन आहरण। मुख्य सचिव, छत्तीसगढ़ सरकार, रायपुर द्वारा प्रस्तुत हलफनामे में, सचिव, समाज कल्याण विभाग, छत्तीसगढ़ सरकार, रायपुर के माध्यम से किए गए विशेष ऑडिट में 31 वित्तीय अनियमितताएं पाई गई हैं, जो भारी भ्रष्टाचार का संकेत देती हैं।
मंत्री को राहत
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है, संबंधित विभाग की तत्कालीन मंत्री को पक्षकार प्रतिवादी बनाया गया है, लेकिन इस रिट याचिका में उनके खिलाफ कोई राहत नहीं मांगी गई है और इसलिए, यह आदेश उनके संबंध में नहीं होगा।
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सीबीआई के वकील ने ये कहा
सीबीआई के वकील ने कोर्ट को बताया कि इस न्यायालय के पहले के आदेश के अनुसार, एफआईआर 5 फरवरी .2020 को भोपाल में पहले से ही पंजीकृत है, हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में इसे रोक कर रखा गया है। इसका अर्थ है कि, एफआईआर पहले से ही पंजीकृत है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस न्यायालय के 30 जनवरी 2020 के पहले के आदेश को केवल इस आधार पर रद्द कर दिया है कि निजी प्रतिवादियों को नोटिस नहीं दिया गया था और उन्हें सुने बिना आदेश पारित किया गया है। अब नोटिस के बाद प्रतिवादी उपस्थित हुए और उन्होंने इस बात पर विवाद नहीं किया कि वे प्रबंध समिति के सदस्य भी थे। हालाँकि, कार्यवाही में प्रस्तुत मुख्य सचिव की रिपोर्ट अडिग है। इसलिए, ऊपर उल्लिखित निर्णयों और ऊपर चर्चा किए गए तथ्यों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून और की गई टिप्पणियों पर विचार करने के बाद, हमारा मानना है कि इस मामले में सच्चाई का पता लगाने के लिए सीबीआई द्वारा निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच की आवश्यकता है।
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टाइमलाइन-SRC और PRRC NGO घोटाले
- 16 नवंबर 2004 कागजों पर दिव्यांगों के लिए SRC-PRRC नाम से 2 संस्थाएं बनाई गईं। 2020 तक घोटाला किया।
- 2004 NGO का संचालन सरकारी विभाग जैसा। 2020 तक कर्मचारियों की 2 जगहों से वेतन निकाला गया।
- 2012 कुंदन ठाकुर 2008 से नौकरी कर रहे थे। 4 साल बाद पता चला उनके नाम से डबल वेतन निकल रहा। कुंदन ने RTI के जरिए जानकारी निकाली। रायपुर में 14, बिलासपुर में 16 अन्य कर्मचारी भी 2 जगह से वेतन पा रहे थे।
- 28 सितंबर 2018 मुख्य सचिव अजय सिंह ने NGO में नियमित बैठक और ऑडिट करने के निर्देश दिए।
- 30 जनवरी 2020 हाईकोर्ट ने कुंदन की याचिका को जनहित याचिका (PIL) में तब्दील किया। CBI जांच के आदेश दिए।
- 25 सितंबर 2025 बिलासपुर हाईकोर्ट ने अब दोबारा CBI जांच के आदेश दिए। सैकड़ों करोड़ का घोटाला हुआ है।
ये हैं NGO घोटाले के आरोपी
- विवेक ढांढ (मुख्य सचिव रैंक)
- एमके राउत (मुख्य सचिव रैंक)
- डॉ. आलोक शुक्ला (अतिरिक्त मुख्य सचिव, शिक्षा विभाग)
- सुनील कुजूर (प्रमुख सचिव, समाज कल्याण)
- बीएल अग्रवाल (प्रमुख सचिव, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण)
- सतीश पांडे (उप सचिव, वित्त)
- पीपी श्रोती (संचालक, पंचायत एवं समाज सेवा संचालनालय)
स्कैम में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी
- राजेश तिवारी
- सतीश पांडेय
- अशोक तिवारी








