बिलासपुर | जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय केशरवानी ने जीएसटी के मुद्दे पर भाजपा सरकार को जमकर घेरा. विजय ने कहा; जीएसटी रिफार्म के नाम पर केंद्र व राज्य की भाजपा सरकार जिस तरह उत्सव मना रही है, किसी की समझ में यह बात आ ही नहीं रही है। उत्सव मनाने वाली कौन सी बात हो गई। सब्जी बाजार चले जाइए, किराना दुकान में रोजमर्रा की चीजें खरीदारी करने वाले हो या फिर जिस घर में मरीज हो और उनको हर महीने दवा की जरुरत पड़ती है। उन घरों में जाकर पूछिए,जीएसटी ने उनके घरों के बजट को किस तरह धराशायी कर दिया है। पहले जमकर लूट और अब छूट की नौटंकी।
जीएसटी के नाम पर केंद्र व राज्य सरकार ने आम आदमी पर एकसाथ दो-दो टैक्स थोप दिया। सेंट्रल जीएसटी और स्टेट जीएसटी। घर में आए मेहमानों को होटल में भोजन कराने जाने से पहले मध्यमवर्गीय परिवार के लोगों को काफी कुछ सोचना पड़ता है। एक बार होटल में भोजन कराने का मतलब एक सप्ताह या फिर पूरे पखवाड़े तक बजट को संतुलित रखना पड़ता है। यह स्थिति अब भी वैसी ही बनी हुई है।
आम आदमी के हालात में अब तक सुधार नहीं हुआ है। जीएसटी रिफार्म का फायदा किसे मिल रहा है। यह भी एक बड़ा सवाल है। नवरात्रि का पर्व चल रहा है। पूजा पाठ की सामग्री तो रिफार्म का असर अब तक दिखाई नहीं दिया है। एक नारियल की कीमत 30 से 32 रुपये के करीब है। शर्मनाक बात है, श्रद्धा पर भी केंद्र व भाजपा की सरकार टैक्स पर टैक्स लगाए जा रही है। उत्सव किसके लिए है। उत्सव से लाभ किस वर्ग को हो रहा है।
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सब्जी बाजार चले जाइए। सब्जियों के दाम सुनने के बाद सीधे नजर जेब पर चली जाती है। जेब में रखे पैसे सब्जियों के दाम सुनकर वह सब खरीदने की आजादी नहीं देता है जो आप घर से सोचकर निकलते हैं। सब्जियां खरीदनी भी जरुरी है, विवशता ऐसी कि बजट आपको आजादी नहीं देता है। इनकी विवशता को उत्सव मनाने वाले क्यों नहीं समझ रहे हैं। किराना दुकान और सब्जी मार्केट पहुंचकर भाजपा के मंत्री व नेताओं को लोगों से मिलना चाहिए, तब हकीकत सामने आएगी।
छत्तीसगढ़ के साथ ही देशभर में एक अलग तरह का माहौल चल रहा है। अजीबो-गरीब और अपने आप में अजूबा सा। देश की जनता और छत्तीसगढ़ की ढाई करोड़ जनता पर साल 2017 से लेकर अबतक जीएसटी की करारी चोट पहुंचाने वाली केंद्र की भाजपा सरकार ने आम आदमी से लेकर मध्यमवर्गीय परिवार पर ऐसे आर्थिक चोट पहुंचाई जिससे आजतलक आम आदमी उबर नहीं पा रहे हैं। खाने के सामान से लेकर जरुरी उपयोग की चीजें, सभी में जीएसटी। यह जीएसटी ना होकर केंद्र सरकार का चक्का टैक्स हो गया है। 500 रुपये का सामान आप खरीद रहे हैं तो 50 से 100 रुपये आपको जीएसटी देना पड़ रहा है। होटल में भाेजन करने जा रहे हैं तो जीएसटी के नाम पर अलग से टैक्स देना पड़ रहा है।
जीएसटी की बाध्यता किसने की, टैक्स पटाने की अनिवार्यता केंद्र की भाजपा सरकार ने ही देश की जनता के सामने जीएसटी के रूप में लाई है। लाखों करोड़ों रुपये जीएसटी के नाम पर वसूलने, आम आदमी से लेकर मध्यमवर्गीय परिवार की आर्थिक स्थिति बिगाड़ने के बाद भाजपा सरकार की चालाकी देखिए। चालाकी कहें या फिर बेशर्मी। पहले तो जीएसटी के नाम पर लोगों की जेबें काटी, कमाई पर डाका डाला और अब आम आदमी की हितैषी बनने का ढाेंग कर रही है। पहले जीएसटी के नाम पर जीभर कर लुटा और अब कमी कर वाहवाही बटोरने का काम कर रही है।
ये कैसा उत्सव, कौन हो रहे शामिल,किसे मिल रहा फायद
जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय केशरवानी ने सवाल उठाते हुए कहा कि जीएसटी रिफार्म के नाम पर भाजपा के मंत्री से लेकर नेता उत्सव मना रहे हैं। आम जनता के लिए ऐसा क्या कर दिया कि उत्सव मना रहे हैं। पहले तो जीभर कर लूटा और उसी में कुछ पैसे लौटाने का ढोंग रच रही है।
बिजली बिल को भी उत्सव में शामिल कर लेते
जिला अध्यक्ष ने राज्य सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार ने आम आदमी से लेकर किसानों को राहत देते हुए बिजली बिल हाफ योजना लेकर आई थी। इससे सभी वर्गों को राहत मिल रही थी। भाजपा सरकार ने इस योजना को बंद कर दिया है। इससे आम आदमी की परेशानी बढ़ गई है। चार से पांच गुना बिजली बिल बढ़ गया है। बिजली बिल ने लोगों के घरों का बजट बिगाड़ कर रख दिया है। अच्छा होता राज्य सरकार ने इसे भी उत्सव में शामिल कर लेती।
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फैक्ट फाइल:
भाजपाई उत्सव की ऐसे खुल रही पोल
- अभी रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों पर सीधा असर आना बाकी है। दुकानदारों का कहना है कि जैसे-जैसे नया स्टॉक आएगा, दाम कम होते चले जाएंगे।
- कुछ कंपनियों ने जीएसटी कटौती के ठीक पहले उन्होंने दाम बढ़ा दिए, ताकि टैक्स कम होने के बाद ग्राहकों को लगे कि दाम घट गए हैं, लेकिन उनका मुनाफा बढ़ा ही रहे।
- दूसरी दिक्कत छोटे पैकेट वाले खुदरा सामान में आने वाली है। अब एक रुपये की टॉफी का दाम घटकर 88 पैसे हो जाएगा, तो खरीदार यह रेजगारी कहां से लाएगा ? या पांच रुपये वाला बिस्कुट का पैकेट चार रुपये 70 पैसे में मिलेगा, तो कितने लोगों को ये 30 पैसे वापस मिल पाएंगे?
जीएसटी में बदलाव का असर इस बात पर निर्भर करेगा कि कंपनियां और अन्य उत्पादक टैक्स कटौती के मुकाबले दाम किस हद तक घटाती हैं। दूसरे देशों के उदाहरणों से पता चलता है कि ऐसे बदलावों का असर 25-100% हो सकता है। लेकिन इनका असर धीरे-धीरे होता है।








