बिलासपुर। बिलासपुर हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विभागीय कार्यवाही को अनिश्चित काल के लिए स्थगित या अनुचित रूप से विलंबित नहीं किया जा सकता। डीविजन बेंच ने यह भी कहा कि आपराधिक मामले के लंबित रहने से विभागीय कार्यवाही स्वतः जारी रहने या समाप्त होने पर रोक नहीं लगती। कोर्ट ने यह भी कहा, आपराधिक मामले में बरी होने से दोषी कर्मचारी के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही समाप्त नहीं हो जाती।
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बिलासपुर हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विभागीय कार्यवाही को अनिश्चित काल के लिए स्थगित या अनुचित रूप से विलंबित नहीं किया जा सकता। डीविजन बेंच ने यह भी कहा कि आपराधिक मामले के लंबित रहने से विभागीय कार्यवाही स्वतः जारी रहने या समाप्त होने पर रोक नहीं लगती।
ग्रामीण बैंक की याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डीविजन बेंच ने कहा कि किसी आपराधिक मामले के लंबित रहने से विभागीय कार्यवाही स्वतः जारी रहने या समाप्त होने पर रोक नहीं लगती। इसके चलते विभागीय कार्यवाही को अनिश्चित काल के लिए स्थगित नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मुकदमे के लंबित रहने तक अनुशासनात्मक कार्यवाही पर रोक केवल एक उचित अवधि के लिए ही होनी चाहिए। बेंच ने साफ कहा कि किसी कर्मचारी द्वारा आपराधिक मुकदमे की लंबी अवधि का उपयोग विभागीय कार्यवाही को अनिश्चित काल के लिए विलंबित करने के लिए नहीं किया जा सकता।
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मामला छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक का है। कार्यरत कर्मचारी को शाखा प्रबंधक के पद पर पदोन्नत किया गया। शाखा प्रबंधक के रूप में कार्यकाल के दौरान वित्तीय अनियमितताओं और धन के दुरुपयोग के गंभीर आरोप सामने आए। बैंक की शिकायत पर पुलिस ने ब्रांच मैनेजर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 409, 420 और 120-बी के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया।
पुलिस में शिकायत के साथ ही बैंक ने मैनेजर के खिलाफ विभागीय जांच शुरू की। बैंक ने दावा किया कि जांच उचित प्रक्रिया के तहत की गई, जिसमें आरोपों की जांच, गवाहों से पूछताछ और क्रॉस एक्जामिनेशन का अवसर प्रदान करना शामिल था। ब्रांच मैनेजर ने विभागीय कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की। याचिका में बताया कि जिन आरोपों पर विभागीय जांच की जा रही है, उन्हीं आरोपों पर आपराधिक मुकदमा लंबित है। मामले की सुनवाई के बाद सिंगल बेंच ने बैंक को निर्देश दिया कि अनुशासनात्मक कार्यवाही में कोई अंतिम आदेश पारित न किया जाए।
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हालांकि, बैंक ने जांच प्रक्रिया जारी रखी। उसने जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की, कारण बताओ नोटिस जारी किया और प्रतिवादी को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया। केवल अनुशासनात्मक प्राधिकारी का अंतिम आदेश ही लंबित रहा। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए बैंक को निर्देश दिया कि आपराधिक मुकदमे की समाप्ति के बाद ही विभागीय कार्यवाही आगे बढाया जाय।
फैसले के खिलाफ बैंक ने पेश की अपील
सिंगल बेंच के फैसले को चुनोती देते हुए बैंक ने डीविजन बैंक के समक्ष याचिका दायर की। याचिकाकर्ता बैंक ने दलील दी कि आरोपी मैनेजर के विरुद्ध आपराधिक मामला लंबित है, जो लगभग पूरा होने वाला है। सिर्फ जांच अधिकारी का साक्ष्य दर्ज होना बाकी है। बैंक ने बताया किकि सिंगल बेंच द्वारा पारित आदेश के परिपालन में विभागीय कार्यवाही को पहले ही जारी रखने की अनुमति दी जा चुकी है, इस टिप्पणी के साथ कि उस स्तर पर कोई अंतिम आदेश पारित नहीं किया जाएगा।
बैंक ने बताया कि आपराधिक मुकदमा लगभग पूरा होने वाला था, इसी बीच आरोपी ब्रांच मैनेजर ने अपना बचाव पहले ही प्रस्तुत किया, याचिकाकर्ता बैंक ने डीविजन बेंच से मांग की, विभागीय कार्यवाही में अंतिम आदेश पारित करने की अनुमति दी जाए। आरोपी बैंक मैनेजर ने कहा कि बैंक को विभागीय कार्यवाही में अंतिम आदेश पारित करने की अनुमति देने से पहले आपराधिक मामले के लंबित रहने को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
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स्थगन केवल एक उचित अवधि के लिए होना चाहिए
मामले की सुनवाई करते हुये डीविजन बेंच ने कहा कि केवल आपराधिक मामले का लंबित रहना ही विभागीय कार्यवाही को जारी रखने या समाप्त करने पर स्वतः रोक नहीं लगाता है। भारतीय स्टेट बैंक एवं अन्य बनाम पी. ज़ेडेंगा के मामले का हवाला देते हुये कहा, यद्यपि कुछ परिस्थितियों में आपराधिक मुकदमे के लंबित रहने तक अनुशासनात्मक कार्यवाही को स्थगित करना वांछनीय या उचित हो सकता है, यह स्वाभाविक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि स्थगन केवल एक उचित अवधि के लिए होना चाहिए। किसी आपराधिक मुकदमे की लंबी अवधि का उपयोग किसी कर्मचारी द्वारा विभागीय कार्यवाही को अनिश्चित काल के लिए विलंबित करने के लिए नहीं किया जा सकता। कोर्ट को यह ध्यान रखना चाहिए कि विभागीय कार्यवाही को अनिश्चित काल के लिए स्थगित या अनुचित रूप से विलंबित नहीं किया जा सकता। ।डीविजन बेंच ने बैंक प्रबन्धन को आरोपी बैंक मैनेजर के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही में अंतिम आदेश पारित करने की छूट दे दी है।








