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नान घोटाला, चार साल बाद आया हाई कोर्ट का ऐसा फैसला
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बिलासपुर। हाई कोर्ट ने 2015 के चर्चित नान घोटाले की सीबीआई से जांच करने संबंधी याचिकाओं को निराकृत कर दिया है। जिन लोगों की नान घोटाले में भूमिका होने के बाद भी ACB ने चालान पेश नहीं किया उनके खिलाफ विचारण न्यायालय में आवेदन पेश करने की छूट दी गई है। ऐसी अन्या याचिकाएं जिनकी ओर से अधिवक्ता या याचिकाकर्ता उपस्थित नहीं हुए हाई कोर्ट ने उन याचिकाओं को खारिज कर दिया है। भाजपा धरमलाल कौशिक के द्वारा एसआईटी जांच के खिलाफ लगाई गई याचिका को वापस लेने की हाई कोर्ट ने अनुमति दे दी है।

डिवीजन बेच ने अपने फैसले में कहा, मामला 10 साल से अधिक पुराना है। अब जांच एजेंसी बदलने की मांग उचित नहीं लगती। विचारण अब अंतिम चरण में है। कोर्ट बे सभी जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया है। शुक्रवार को हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस पीपी साहू की विशेष डिवीजन बेंच में नान घोटाले से जुड़ी 8 याचिकाओं पर सुनवाई हुई। गौरतलब है कि इसी मामले से संबंधित याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने के कारण करीब 4 साल से इन याचिकाओं की सुनवाई नहीं हो पा रही थी। सितंबर में सुप्रीम कोर्ट से नान घोटाले से संबंधित सभी मामलों का निराकरण होने के बाद आज हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिकाओं एवं अन्य याचिाकाओं पर सुनवाई हुई।

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आज सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने इस बात को नोट किया कि केवल दो जनहित याचिकाओं जो की हमर संगवारी एनजीओ और सुदीप श्रीवास्तव अधिवक्ता के द्वारा लगाई गई थी उसमें ही अधिवक्ता या याचिकाकर्ता अदालत में उपस्थित है। इसके अलावा अन्य याचिकाओं की तरफ से कोई उपस्थित नहीं हुआ। भारतीय जनता पार्टी के विधायक धरमलाल कौशिक की ओर से अधिवक्ता गैरी मुखोपाध्याय उपस्थित थे।

राज्य सरकार की ओर से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दिल्ली से अधिवक्ता अतुल झा ने कोर्ट को बताया कि 10 साल।में इस मामले में ट्रायल कोर्ट में 224 में से 170 गवाहों की गवाही हो चुकी है। मामला अब अपने अंतिम चरण की ओर जा रहा है। बेंच ने अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव से याचिकाकर्ता की भूमिका पर सवाल किए और पूछा कि उनका इस मामले से क्या संबंध है। अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने जवाब में अपनी जनहित याचिका के बारे में बताते हुए कहा कि जिन व्यक्तियों का चालान हुआ है या जिनका विचारण चल रहा है उस पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है बल्कि वे उसका समर्थन करते हैं। श्रीवास्तव ने आगे कहा कि एसीबी ने अपनी जांच में बहुत सारे लोगों को छोड़ दिया है और उन्हें सीधा-सीधा रोल होने के बावजूद पैसे लेने के बावजूद अभियुक्त नहीं बनाया है । यहां तक कि जहरीला नमक सप्लाई करने वाले अभियुक्त मुनीश कुमार शाह की अब तक गिरफ्तारी भी नहीं की गई है।

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एसीबी की जांच आधी अधूरी है। अतः उनकी याचिका इस जांच को सीबीआई को देकर इन सभी व्यक्तियों के ऊपर भी कार्यवाही करने के लिए है। इस स्तर पर खंडपीठ ने कहा कि यह मांग तो विचरण न्यायालय में धारा 319 का आवेदन लगाकर भी पूरी की जा सकती है। यह कहते हुए कि मामला 10 साल से अधिक पुराना है और अब जांच एजेंसी बदलने की मांग उचित नहीं लगती। विचारण अब अंतिम चरण में है सभी जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया।

क्या है नान घोटाला ?


एक समय छत्तीसगढ़ की राजनीति में भूचाल मचा देने वाले नान घोटाले में वस्तुतः छत्तीसगढ़ के पीडीएस स्कीम या राशन प्रणाली वितरण में हुई गड़बड़ी से संबंधित है। एसीबी की चार्ज शीट के अनुसार नागरिक आपूर्ति निगम नान के ऊपर यह जिम्मेदारी थी कि वह छत्तीसगढ़ में राशन वितरण एवं साथ ही साथ अन्य सामानों के वितरण के लिए चावल का प्रोक्योरमेंट और दाल नमक आदि सभी चीजों का प्रोक्योरमेंट कर उनका वितरण करें।

55 लाख परिवार और बनाया 70 लाख राशनकॉर्ड


2011 की जनसंख्या के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य में 55 लाख परिवार होने के बावजूद 70 लाख राशन कार्ड बनाए जाने और उसके माध्यम से हजारों करोड़ों का राशन अफरा तफरी करने के आरोप है। जहां तक राशन कार्ड में आदिवासी इलाकों में आयोडाइज्ड नमक की सप्लाई की बात है इसके तहत घटिया क्वालिटी के नमक जिसमें जांच में कांच के टुकड़े होना तक पाया गया उसको लेकर सप्लाई करने के लिए नान के द्वारा दिया गया।

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जिला प्रबंधकों को ACB ने नहीं बनायाअभियुक्त


चार्ज शीट के अनुसार नान के 27 के 27 जिला प्रबंधक और क्षेत्रीय कार्यालय तथा मुख्यालय अध्यक्ष मैनेजिंग डायरेक्टर आदि सभी सरकार में उच्च स्तर संरक्षण प्राप्त रैकेट को संचालित कर रहे थे। एसीबी में इसके बावजूद सभी जिला प्रबंधकों को अभियुक्त नहीं बनाया।

मुख्य अभियुक्त की गिरफ्तारी में विलंब


छापे दौरान ऐसे बहुत से लोक सेवक जिनके पास घोटाले की रकम पहुंचाने के पुख्ता सबूत मिले उनसे कोई पूछताछ तक नहीं हुई। एंटी करप्शन ब्यूरो और EOW इकोनामिक ऑफेंस विंग द्वारा छापा मारने के बाद एक तरह से मामले को रफा दफा करने का प्रयास अधिक किया यहां तक की मुख्य अभियुक्त की गिरफ्तारी भी तुरंत नहीं हुई।

पहले धरमलाल और फिर विक्रम उसेंडी ने किया विरोध


2018 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनने के बाद इसकी विशेष जांच के लिए एक एसआईटी का गठन हुआ था। तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने इस मामले की एसआईटी जांच करने के खिलाफ एक जनहित याचिका लगा दी। आगे जाकर भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने भी इस मामले को सीबीआई जांच के लिए देने का विरोध किया और ऐसा आवेदन जनहित याचिका में लगाया।

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सुप्रीम कोर्ट में ईडी की याचिकाओं के निराकरण के बाद खुला रास्ता


इस मामले की 2017, 2019 और 2021 में तीन बार लंबी-लंबी सुनवाई हुई। परंतु मामले में अंतिम फैसला नहीं आया। इसी बीच ईडी प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई याचिका के आधार पर हाई कोर्ट में जनहित याचिकाओं पर चल रही सुनवाई पर रोक लगा दी गई। 2 साल से अधिक समय तक यह रोक प्रभावी रही और अब सुप्रीम कोर्ट में ईडी की याचिकाओं का निराकरण होने के बाद जिसके आधार पर आईएएस अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला को नान घोटाले में गिरफ्तार किया गया है इन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई का रास्ता साफ हुआ था।


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