बिलासपुर। छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी कहे जाने वाली नदियों पर रेत माफियों की बुरी नजर लग गई है। अरपा हो या फिर शिवनाथ, खारुन,उत्तर से लेकर दक्षिण छत्तीसगढ़ की नदियां। हर जगह रेत घाट में माफिया जे हथियारबंद गुर्गे नजर आ जाएंगे। रेत के धंधे में इनके कूदने के बाद नदियों की दुर्गति हुई है, वह किसी से छिपी भी नहीं है। बेतरतीब खुदाई ने नदियों का स्वरूप तो बिगाड़ा ही है, अब इनके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जीके में बहने वाली अरपा नदी में माफिया के करतूत की वीडियो वायरल हो रहा है। यह वीडियो मंगला क्षेत्र के पाट बाबा की है। यह तब की है जब पूरे देश मे रेत खुदाई पर बैन लगा हुआ था। पर्यावरण संरक्षण मंडल द्वारा बारिश के दिनों में खुदाई पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है, जो 15 अक्टूबर तक प्रभावशील रहता है। पर यह क्या, यहां तो प्रतिबन्ध के बाद खुदाई तो छोड़िए सैकड़ों की तादाद में ढुलाई के लिए ट्रैक्टर की लसिं लगी हुई है। नदी के भीतर ट्रेक्टरों की ऐसी कतार अक्सर देखा जा सकता है। एक अहम सवाल ये कि माइनिंग विभाग के अफसर और महकमा कहां है।
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शहर के अलावा आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए जीवनदायिनी नदियों में चली रही बेतहाशा रेत खुदाई के कारण अरपा के अलावा अन्य नदियों के अस्तित्व को लेकर खतरा पैदा हो गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों का पालन तो दूर दिन- रात में भारी भरकम मशीनों के जरिए रेत की खुदाई की जा रही है और परिवहन भी इसी रफ्तार से हो रहा है।
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नदियों के संरक्षण की दिशा में प्रशासन की उदासीनता के बीच रेत माफिया अपना खेल तेजी के साथ खेल रहे हैं। वैध और अवैध रेत घाटों में सुबह से लेकर देर रात तक पोकलेन मशीन, ट्रैक्टर व हाइवा की लंबी कतार देखी जा सकती है। तुकडिीह से लेकर सेंदरी और कछार से लेकर तखतपुर की सीमा से लगे घाटों में माफिया राज चलता है। ग्रामीण सब-कुछ देखने के बाद इसलिए चुप हैं कि शिकायत करने के बाद प्रशासन स्तर पर कार्रवाई होती नहीं है। उलटे वे माफिया के टारगेट पर आ जाते हैं।
हाई कोर्ट में जनहित याचिका पर हो रही सुनवाई
अरपा अर्पण महाभियान समिति ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर अरपा में रेत की खुदाई पर पूरी तरह रोक लगाने व अरपा के संरक्षण व संवर्धन को लेकर प्रभावी कार्ययोजना बनाने की मांग की है। याचिका में कहा है कि अरपा नदी में रेत की बेतहाशा खोदाई की जा रही है। रेत की खोदाई के लिए तर का पालन नहीं हो रहा है। इसके कारण अरपा के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो गया है। रेत ठेकेदार मापदंडों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। रेत की बेतरतीब खोदाई के कारण अब अरपा नदी में बारिश के पानी के नहीं रुकने की आशंका भी होने लगी है। याचिका में अरपा के अलग-अलग जगहों की तस्वीर भी पेश की गई है। इसको देखने से यह लगता ही नहीं कि नदी का हिस्सा है। रेत की जगह नदी में मिट्टी दिखाई दे रही है।
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तुकर्काडीह पुल के 300 मीटर के दायरे में खनन
तुर्काडीह पुल के 300 मीटर के दायरे में रेत की खुदाई हो रही है। इसके कारण पुल के अस्तित्व पर एक बार फिर खतरा मंडराने लगा है। पहले घटिया निर्माण के कारण यह पुल चर्चा में रहा और अब रेत की खोदाई के कारण चर्चा में है। नियमों पर गौर करें तो पुल के आसपास रेत उत्खनन पर प्रतिबंध है। इसके बाद भी खोदाई हो रही है। तीन करोड 80 लाख के 370 मीटर लंबी इस पुल के अस्तित्व को लेकर एक बार फिर खतरा पैदा हो गया है। पर्यावरणीय स्वीकृति तीन वर्ष के लिए वैध रहेगी। उत्खनन किए जाने वाले क्षेत्र की विस्तृत रिपोर्ट डेढ़ वर्ष बाद पेश करने की अनिवार्यता है।
जानिए क्या है नियम
- यदि खदान खनिज विभाग द्वारा अधिसूचित किसी क्लस्टर सूची में है तो पर्यावरण स्वीकृति मान्य नहीं होगी।
- उत्खनन क्षेत्र 4.90 हेक्टेयर से अधिक नहीं होगा। खदान क्षेत्र से रेत का अधिकतम उत्खनन 69,825 घनमीटर प्रति वर्ष से अधिक नहीं होगा।
- लीज क्षेत्र की सीमाओं का सीमांकन कराने के बाद पक्के मुनारे लगाने होंगे।
- रेत का उत्खनन वर्षा ऋतु में प्रतिबंधित रहेगा।
- उत्खनन कार्य अनुमोदित माइनिंग प्लान के अनुसार किया जाएगा।
- रेत का उत्खनन नदी तटों से कम से कम 10 मीटर की दूरी छोड़कर ही किया जाएगा। जिससे नदी तटों का क्षरण ना हो एवं इसे पर नियंत्रण रखा जा सके।
- रेत का उत्खनन दिन के समय किया जाएगा।
- रेत की खोदाई व भराई का काम रात्रि में प्रतिबंधित रहेगा।








