दिल्ली। वसीयत और कानूनी उत्तराधिकारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। बेंच ने कहा कि कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच विवाद की स्थिति ना होने के बाद भी सत्यापकर्ता का गवाही जरुरी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, उत्तराधिकारियों के बीच सौहार्द्रपूर्ण वातावरण होने के बाद भी साक्ष्य अधिनियम की धारा 68 के तहत यह कानूनी प्रक्रिया को पूरा करना अनिवार्य है। वादी-प्रतिवादी दोनों ने दावा किया कि 1996 में अपने पिता से विक्रय समझौते, सामान्य पावर ऑफ अटॉर्नी, शपथ पत्र, रसीद और रजिस्टर्ड वसीयत के माध्यम से संपत्ति खरीदी थी।
प्रमुख प्रतिवादी ने कहा,उसका भाई शुरू में लाइसेंसधारी था, जिसने बाद में आधी संपत्ति अवैध रूप से तीसरे पक्ष को को बेच दी। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि संपत्ति उसे 1973 में मौखिक रूप से उपहार में दी गई। तब से वह उस पर काबिज है। याचिकाकर्ता ने उस वसीयत को भी चुनौती दी, जिसके माध्यम से भाई संपत्ति पर अपना दावा पेश कर रहा था। याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है जिसमें कहा गया, साक्ष्य अधिनियम की धारा 68 के तहत कम से कम सत्यापनकर्ता गवाह से पूछताछ न करना उसके मामले के लिए घातक नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा याचिका कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच विवाद से ताल्लुक नहीं रख रहा था। इसके अलावा याचिकाकर्ता वसीयतकर्ता भी नहीं है। मौखिक हस्तांतरण के माध्यम से स्वामित्व के लिए दावा कर रहा था,लिहाजा वसीयत के प्रमाण के नियमों में ढील दी जा सकती थी।
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया हाई कोर्ट का आदेश
हाई कोर्ट के निर्देश को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने कहा, धारा 68 विरोधी पक्ष की पहचान या उनके दावे की प्रकृति के आधार पर कोई अपवाद नहीं बनाती है। इसमें व्यवस्था दी गई है, धारा 68 का अधिदेश हर उस वसीयत पर लागू होता है, जिसे अदालत में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल करने की मांग की जाती है, चाहे उसका विरोध कोई भी कर रहा हो। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा, साक्ष्य अधिनियम की धारा 68 के अनुसार वसीयत के कम से कम एक सत्यापन कर्ता गवाह से पूछताछ करना अनिवार्य है।








