दिल्ली। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जमानत और अग्रिम जमानत के मामलों के लिए टाइम लिमिट तय कर दिया है। देशभर के हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट को निर्देशित किया है कि जमानत और अग्रिम जमानत याचिकाओं पर 3-6 महीने के भी फैसला देने कहा है। सालों तक इस तरह की याचिकाओं का लंबित ना रखने की बात भी कही है। याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, हाईकोर्ट और अधीनस्थ अदालतें जमानत और अग्रिम जमानत की याचिकाओं का निपटारा कम समय में करें, अधिकतम 3 से 6 महीने के भीतर। जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की डिवीजन बेंच ने कहा कि ऐसी याचिकाएँ सीधे तौर पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) से जुड़ी होती हैं, इसलिए इन्हें वर्षों तक लंबित नहीं छोड़ा जा सकता। कोर्ट ने टिप्पणी की,“व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ी याचिकाएँ सालों तक लंबित नहीं रखी जा सकतीं। लंबी देरी से न केवल आपराधिक प्रक्रिया संहिता CrPC के उद्देश्य पर असर पड़ता है, बल्कि यह न्याय से वंचित करने के बराबर है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 की भावना के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा, जमानत और अग्रिम जमानत की याचिकाओं पर जल्दी और मेरिट के आधार पर फैसला होना चाहिए, इन्हें टालना उचित नहीं है।
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क्या है मामला
याचिकाकर्ता ने 2019 में अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने इसे तकरीबन चार साल 2025 तक लंबित रखा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमने इस प्रथा की कड़ी निंदा की है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने तीन आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इन पर IPC की धारा 420, 463, 464, 465, 467, 468, 471 और 474, धारा 34 के तहत जालसाजी और जमीन के अवैध हस्तांतरण का आरोप था। दो आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का आदेश बरकरार रखा और अपीलें खारिज कर दीं। साथ ही कहा कि अगर आरोपी गिरफ्तार होते हैं तो उन्हें नियमित जमानत के लिए आवेदन करने की छूट रहेगी।








