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भगवान भरोसे हैं पुलिस परिवार: जर्जर क्वार्टर में कभी भी हो सकता है जानलेवा हादसा. हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से शपथ पत्र के साथ मांगा जवाब.
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बिलासपुर | छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से बड़ी खबर आई है। पुलिस और उनके परिवार भगवान भरोसे रह रहे हैं। किसी भी समय और कभी भी भयावह हादसा हो सकता है। हादसा हुआ तो ना जाने क्या हो जाएगा। बिलासपुर हाई कोर्ट ने इसे स्वत: संज्ञान में लेते हुए पीआईएल के रूप में स्वीकार किया है। डिवीजन बेंच ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर शपथ पत्र के साथ जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।

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मीडिया रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि राजधानी रायपुर के आमानाका में बने पुलिस क्वार्टर की हालत बेहद खराब है। पुलिस क्वार्टर में 24 मकान तकरीबन 34 साल पुराने है। हालत बेहद खराब। जीर्ण-शीर्ण। इसकी हालत देखकर आसपास से गुजरने में डर लगता है। कल्पना कीजिए यहां पुलिस परिवार रहता है। बच्चे भी इसी जर्जर मकान में अपना भविष्य गढ़ रहे हैं। जहां पास से गुजरने में डर लगता है वहां पुलिस परिवार दिन और रात रहते हैं। कल्पना कीजिए कैसे यहां चैन की नींद सोते होंगे। पुलिस क्वार्टर की बदहाली के बाद भी राज्य शासन द्वारा नए क्वार्टर के लिए धनराशि नहीं दी जा रही है। मीडिया रिपोर्ट में इन सब बातों के खुलासे को गंभीरता से लेकर चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने स्वत: संज्ञान में लेते हुए जनहित याचिका के रूप में सुनवाई प्रारंभ की है। मामले की प्रारंभिक सुनवाई के दाैरान डिवीजन बेंच ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर शपथ पत्र के साथ जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।

सीढ़ियां टूटकर खंभों के सहारे टिकी


जर्जर क्वार्टर में 20 पुलिस परिवार रहते हैं। क्वार्टर की हालत पढ़ने से ही आप सिहर जाएंगे। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पहली मंजिल तक जाने के लिए बनाई गई सीढ़ियां टूटकर खंभों के सहारे टिकी हुई है। अंदाज लगाइए ऐसी हालत में यहां 20 परिवार रह रहे हैं।

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निगम ने पहले ही घोषित कर दिया है जर्जर व खतरनाक

नगर निगम ने सुरक्षा के नजरिए से इन सभी क्वार्टर को जर्जर घोषित कर दिया है। इसके बाद भी जर्जर मकानों को तोड़ा नहीं गया है। ऐसे ही छोड़ दिया गया है। पुलिस परिवार यहां रह रहे हैं। इनको खाली भी नहीं कराया गया है। स्वाभाविक बात है इन परिवार के सामने सबसे बड़ी समस्या ये कि रहने का विकल्प नहीं है। विकल्प रहता तो कब का जर्जर मकान छोड़कर दूसरी जगह शिफ्ट हो गए होते। ये सभी परिवार मजबूरीवश यहां रह रहे हैं।

कमोबेश कुछ इसी तरह की स्थिति कांस्टेबल और हेड कांस्टेबलों के मकानों की भी है। बीते 6 साल से निर्माण अटका हुआ है।
फाइनल रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि जर्जर मकानों के सुधार के लिए 10 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए और नए मकानों के लिए 400 करोड़ रुपये की योजना तैयार कर भेजी गई। हालांकि, नए मकानों के निर्माण के लिए अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। पीआईएल की सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने एमडी पुलिस आवास निगम सिविल लाइन को नोटिस जारी कर व्यक्तिगत रूप से शपथ पत्र के साथ जवाब पेश करने का निर्देश दिया है। पीआईएल की अगली सुनवाई के लिए डिवीजन बेंच ने 17 सितंबर की तिथि तय की है।

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