बिलासपुर। शिक्षा के अधिकार में निजी स्कूल प्रबंधन द्वारा गरीब बच्चों को एडमिशन देने में की जा रही गड़बड़ी को लेकर बिलासपुर हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच में सुनवाई चल रही है। बीते सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने बिना मान्यता के संचालित प्ले स्कूलों पर हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाई है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने शिक्षा विभाग के अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए जमकर फटकार लगाई।
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छत्तीसगढ़ में बगैर मान्यता के चल रहे सीबीएसई पाठ्यक्रम के तहत नर्सरी स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर डिवीजन बेंच ने स्कूल शिक्षा विभाग के सिकरेट्री से जवाब मांगा था। सिकरेट्री के बजाय ज्वाइंट सिकरेट्री ने शपथ पत्र के साथ जवाब पेश कर दिया। इसे लेकर हाई कोर्ट की नाराजगी सामने आई थी। नाराज बेंच ने अफसर से पूछा कि सिकरेट्री का जवाब क्यों नहीं आया। बेंच ने यह भी पूछा कि स्कूल प्रबंधन के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई जिसने बिना मान्यता के ही नर्सरी की कक्षाएं संचालित कर रहे हैं। नाराज बेंच ने स्कूल शिक्षा विभाग के सिकरेट्री को जवाब पेश करने का निर्देश दिया है। शपथ पत्र के साथ पेश किए जाने वाले जवाब में सिकरेट्री को यह बताना होगा कि बगैर मान्यता के चल रहे नर्सरी स्कूलों पर अब तक क्या कार्रवाई की गई है। याचिका की अगली सुनवाई के लिए डिवीजन बेंच ने 17 अक्टूबर की तिथि तय कर दी है।
एक साथ दो पीआईएल पर चल रही सुनवाई
शिक्षा के अधिकार आरटीई के तहत निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को एडमिशन देने में आनाकानी करने के खिलाफ भिलाई निवासी सावंत ने अधिवक्ता देवर्षी ठाकुर के जरिए जनहित याचिका दायर की है। इसी बीच आरटीई एक्टिविस्ट व कांग्रेस नेता विकास तिवारी ने बगैर मान्यता चल रहे सीबीएसई पाठयक्रम के स्कूलों के खिलाफ याचिका दायर की। दोनों याचिकाओं पर हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच में एकसाथ सुनवाई चल रही है। मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया कि छूट के लिए अलग से आवेदन देने का सिस्टम नहीं है। इस पर चीफ जस्टिस सिन्हा ने इस स्पष्टीकरण से असहमति जताते हुए कहा कि कोर्ट की कार्यवाही को किसी भी व्यक्ति द्वारा हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, चाहे वह सामान्य पक्षकार हो या राज्य सरकार का कोई अधिकारी। उन्होंने सख्त चेतावनी दी कि भविष्य में ऐसी छूट के लिए एक अलग आवेदन अनिवार्य रूप से दें।
डिवीजन बेंच ने पूछे ये सवाल
हाईकोर्ट ने राज्य शासन से कहा कि 5 जनवरी 2013 को परिपत्र जारी कर प्रदेश में बिना मान्यता वाले नर्सरी और प्ले स्कूलों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए थे। इसके बावजूद पिछले 15 सालों से ऐसे संस्थान खुलेआम संचालित हो रहे हैं। डिवीजन बेंच ने कहा कि यह गंभीर लापरवाही है और अब स्पष्ट कार्ययोजना पेश करनी होगी। राज्य सरकार ने अपने जवाब में बताया कि 16 सितंबर 2025 को सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि 15 दिन के भीतर प्रदेश के सभी प्ले स्कूल और प्री-प्राइमरी स्कूलों की जानकारी अनिवार्य रूप से एकत्रित करें। राज्य शासन ने कोर्ट को यह भी बताया, 2 सितंबर को सात सदस्यीय समिति का गठन किया गया है, जो नई शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सिफारिशों के अनुरूप नए नियम और गाइडलाइन तैयार करेगी।








