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चीफ जस्टिस ने कहा: जब कोई व्यक्ति स्वर्ग सिधार जाता है, तो उसका शरीर सम्मानपूर्वक अंतिम विदाई का होता है हकदार
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बिलासपुर। बिलासपुर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की संवेदनशीलता एक बार सामने आई है। रविवार को चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा रहंगी ग्राम पंचायत स्थित मुक्तिधाम (अंत्येष्टि स्थल) पर अंतिम संस्कार में शामिल होने गए थे, जहाँ मुक्तिधाम की स्थिति अत्यंत दयनीय पाई गई। मुक्तिधाम में न्यूनतम सुविधाएं भी नहीं हैं। दयनीय स्थिति को देखते हुए, मामले का संज्ञान लेते हुए यह स्वतः संज्ञान जनहित याचिका दर्ज कर सुनवाई प्रारम्भ की है।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि सबसे पहले, वहां कोई चारदीवारी या बाड़ नहीं है जिससे यह पहचाना जा सके कि वह क्षेत्र क्या है या किस स्थान तक अंतिम संस्कार/दाह संस्कार या दफन किया जा सकता है। वहां पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं है और उक्त मार्ग गड्ढों से भरा हुआ है और इस बरसात के मौसम में यह पानी से भर गया है, जिससे लोगों के लिए अंतिम संस्कार स्थल तक पहुंचना एक थकाऊ काम बन गया है। यह इलाका झाड़ियों और झाड़ियों से भरा हुआ है, जो इसे खतरनाक बनाता है क्योंकि यह साँपों और अन्य ज़हरीले कीड़ों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल है। इसके अलावा, यह भी देखा गया कि यहाँ सफ़ाई का पूर्ण अभाव था। क्योंकि दाह संस्कार से पहले और बाद में इस्तेमाल की गई वस्तुएं, फेंके गए कपड़े, पॉलिथीन बैग, शराब की बोतलें और अन्य अवांछित वस्तुएं यहां-वहां पड़ी रहती थीं और वहां एक भी कूड़ेदान नहीं था।

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यहां न तो प्रकाश की सुविधा है, न आगंतुकों, शोक व्यक्त करने वालों के लिए कोई शेड है, न बैठने की कोई सुविधा है और लोगों को लंबे समय तक सभी मौसमों में खुले आसमान के नीचे खड़े रहने के लिए विवश होना पड़ता है। किसी भी प्रकार की सहायता, सेवा के लिए संपर्क किए जा सकने वाले किसी भी अधिकृत व्यक्ति/देखभालकर्ता का अभाव। अधिकृत कर्मियों के कम से कम मोबाइल नंबर दर्शाने वाला कोई साइनबोर्ड नहीं।।मुक्तिधाम में ठोस एवं गीला अपशिष्ट प्रबंधन शेड का अस्तित्व अत्यधिक अनुपयुक्त है।

दिवंगत व्यक्ति के साथ भावनाएँ जुड़ी होती हैं
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों में सम्मानजनक मृत्यु और अंतिम संस्कार का अधिकार शामिल है। जब कोई व्यक्ति स्वर्ग सिधार जाता है, तो उसका शरीर सम्मानपूर्वक अंतिम विदाई का हकदार होता है। मृत शरीर कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसका अमानवीय तरीके से अंतिम संस्कार किया जा सके। दिवंगत व्यक्ति के साथ भावनाएँ जुड़ी होती हैं, इसलिए परिवार के सदस्य; रिश्तेदार आदि उसे सम्मानपूर्वक और शांतिपूर्ण माहौल में अंतिम विदाई देना अवश्य चाहेंगे। ऐसी सार्वजनिक सुविधाओं में सभ्य और स्वच्छ स्थिति सुनिश्चित करना राज्य का संवैधानिक दायित्व है, और ऐसा करने में विफलता संविधान, नगरपालिका अधिनियमों और विभिन्न पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य कानूनों के तहत अपने कर्तव्य का परित्याग है।

डीबी ने कहा कि यह ध्यान में लाया गया है कि ऐसी स्थिति लगभग पूरे राज्य में मौजूद है, खासकर जब उक्त मुक्तिधाम किसी ग्राम पंचायत या ग्रामीण क्षेत्र के अंतर्गत आता है और श्मशान घाट (मुक्तिधाम) वह स्थान है जिसे सबसे कम प्राथमिकता दी जाती है। प्रशासन; स्थानीय राज्य प्रशासन; जिला प्रशासन को ये उपाय करने होंगे:

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सफाई अभियान:
नगर निगम/स्थानीय निकाय को तत्काल अंतिम संस्कार स्थल पर व्यापक सफाई एवं स्वच्छता अभियान चलाना होगा।।कचरा, खरपतवार, स्थिर पानी और अन्य अपशिष्ट पदार्थों को हटाना।

बुनियादी ढांचे की मरम्मत:
किसी भी टूटे हुए प्लेटफार्म, रास्ते, शेड या बाड़/दीवार की मरम्मत या पुनर्निर्माण प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा।

जल एवं विद्युत आपूर्ति:
कार्यशील जल नल और प्रकाश व्यवस्था को बिना किसी देरी के बहाल या स्थापित किया जाना चाहिए।

आश्रय और बैठने की व्यवस्था:
अंतिम संस्कार के दौरान मृतक के परिवार और रिश्तेदारों के उपयोग के लिए बैठने की व्यवस्था सहित एक ढका हुआ आश्रय बनाया/उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

शौचालय और अपशिष्ट प्रबंधन:
कम से कम दो स्वच्छ और कार्यात्मक शौचालय (लिंग भेद के साथ) उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
अपशिष्ट निपटान के लिए कूड़ेदान रखे जाने चाहिए तथा उन्हें प्रतिदिन साफ ​​किया जाना चाहिए।

दाह संस्कार अवसंरचना:
इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करें: पर्याप्त मात्रा में जलाऊ लकड़ी या एल.पी.जी. की आपूर्ति। यदि विद्युत या गैस शवदाह गृह पहले से स्थापित है तो उसे पूर्णतः कार्यात्मक तथा स्टाफयुक्त होना चाहिए। प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों के अनुपालन में राख के विसर्जन/निपटान के लिए एक निर्दिष्ट क्षेत्र।

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कर्मचारियों की नियुक्ति:
कार्यस्थल पर कम से कम दो समर्पित सफाई कर्मचारी और एक देखभालकर्ता तैनात किया जाएगा। निगरानी के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाएगा।
जिले के सभी श्मशान घाटों की स्थिति।

रिकॉर्ड रखरखाव:
सभी दाह संस्कार/दफ़नाने के लिए एक रजिस्टर (डिजिटल या मैनुअल) रखा जाएगा। साइट पर एक हेल्पलाइन नंबर और शिकायत निवारण तंत्र प्रदर्शित किया जाएगा।

नियमित निगरानी:
राज्य नियमित अंतराल पर श्मशान घाटों का निरीक्षण करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर सकता है, जिसमें नगरपालिका अधिकारी, स्वास्थ्य अधिकारी और स्थानीय गैर सरकारी संगठन शामिल होंगे।

बजट आवंटन:
राज्य सरकार शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सभी श्मशान/अंत्येष्टि स्थलों के रखरखाव और उन्नयन के लिए पर्याप्त धनराशि का आवंटन सुनिश्चित करेगी।

0 मानक दिशानिर्देश:
राज्य अंत्येष्टि स्थलों के उन्नयन एवं सुधार के लिए न्यूनतम मानक दिशानिर्देश/रोडमैप तैयार कर सकता है।

डिप्टी AG ने दी जानकारी
उप-महाधिवक्ता शशांक ठाकुर ने तर्क दिया कि जिला प्रशासन/जनपद पंचायत के कुछ अधिकारी आज ही उक्त मुक्तिधाम का दौरा करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार के पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग के सचिव भी इस मामले में अपनी बात रखेंगे।इस मुद्दे में और इस तरह, इसे पार्टी-प्रतिवादी के रूप में भी शामिल किया जा सकता है।

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डीबी ने रजिस्ट्री को दिया निर्देश
मामले की सुनवाई के दौरान डीबी ने कहा; हम रजिस्ट्री को निर्देश देते हैं कि वह आज ही इस याचिका में छत्तीसगढ़ सरकार, पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग के सचिव को पक्षकार बनाए।

चीफ सिकरेट्री; सहित इन अफसरों को शपथ पत्र के साथ देना होगा जवाब
चीज जस्टिस रमेश सिंह व जस्टिस बीड़ी गुरु की डिवीजन बेंच ने मुख्य सचिव, छत्तीसगढ़ सरकार के पंचायत और समाज कल्याण विभाग के सचिव और साथ ही कलेक्टर, बिलासपुर को इस मुद्दे पर अपने-अपने व्यक्तिगत हलफनामे दायर करने और श्मशान घाटों की बेहतरी के संबंध में राज्य के रोडमैप या विजन के बारे में न्यायालय को सूचित करने का निर्देश दिया हैं। जनहित याचिका की अगली सुनवाई के ये बेंच ने 13 अक्टूबर की तिथि तय कर दी है।

इन जिमीदारों को देना होगा जवाब

  • सिकरेट्री छग शासन
  • सचिव PWD
  • सचिव ऊर्जा विभाग, सी.एस.पी.डी.सी.एल.
  • कलेक्टर बिलासपुर, जिला- बिलासपुर, छत्तीसगढ़
  • अनुविभागीय अधिकारी बिल्हा, जिला- बिलासपुर
  • CEO जनपद पंचायत बिल्हा
  • सरपंच ग्राम पंचायत रहगी

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