जबलपुर। याचिकाकर्ता स्वयं अधिवक्ता हैं। गाने और टीचर को लेकर आपत्ति जताई है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने अपनी याचिका में लिखा है कि फिल्म में वकील का रोल कर रहे अभिनेता नेक बैंड पहनकर नाच गा रहे हैं। याचिका के अनुसार नेक बैंड वकालत पेश की गरिमा,जिम्मेदारी और गंभीरता और दायित्व को इसी अंदाज में निर्वहन करने का प्रतीक है। गाने में फिल्म निर्माता से लेकर अभिनेता ने वकालत पेशे को तार-तार कर दिया है। यह वकालत पेश की गरिमा के प्रतिकूल है और आपत्तिजनक है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने सिनेमैटोग्राफ अधिनियम का हवाला देते हुए कहा है कि सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 5B के सिद्धांतों का सीधा-सीधा उल्लंघन है। इस तरह का चित्रण और फिल्मांकन अपमानजक है। याचिका के अनुसार गाने में अश्लीलता के अलावा अपमानजनक और आपत्तिजनक बोल हैं। यह अधिवक्ताओं के साथ ही आम जनता की भावनाओे को आहत करने वाला है। इस तरह के गाने और फिल्मांकन से युवाओं पर विपरीत असर पड़ेगा।
गाने के प्रदर्शन, प्रसारण और प्रसार पर रोक लगाने की मांग
याचिकाकर्ता ने संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण रूप से निरपेक्ष नहीं है। यह अनुच्छेद 19(2) के तहत शालीनता, नैतिकता और न्यायालय की अवमानना रोकने जैसे आधारों पर सीमित है। याचिकाकर्ता ने गाने के प्रदर्शन, प्रसारण और प्रसार पर रोक लगाने की मांग करते हुए केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड CBFC को गाने का प्रमाणपत्र वापस लेने निर्देशित करने की मांग की। पीआईएल की अगली सुनवाई के लिए डिवीजन बेंच ने 9 सितंबर की तिथि तय कर दी है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसी तरह की याचिका को कर दिया था खारिज
इसी तरह की एक याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर की गई थी। मामले की सुनवाई जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस बृजराज सिंह की डिवीजन बेंच में हुई थी। डिवीजन बेंच गाने भाई वकील हैं, में ऐसा कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं है,जिस पर अदालत को हस्तक्षेप करना पड़े। डिवीजन बेंच ने यह भी माना कि गाने के बोल से वकीलों के पेशेवर आचरण में कोई हस्तक्षेप नहीं हो रहा है। इन टिप्पणियों के साथ बेंच ने याचिका खारिज कर दी थी।








