दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बीमा कंपनी बीमाधारक को मुआवजा देने से बच नहीं सकती। मुआवजा देने से बचने के किये अदालतों में दायर की जाने वाली अनावश्यक तकनीकी अपीलों को लेकर कोर्ट ने नाराजगी जताई। इसी तरह की एक अपील पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने बीमा कंपनी पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। जुर्माने की राशि बीमाधारक को देने का निर्देश दिया है। यह राशि मुआवजा जे अतिरिक्त होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने आने फैसले में कहा है कि कार्य के दौरान घायल हुए किसी कर्मचारी को मुआवज़ा देने का पूरा बोझ अकेले नियोक्ता Employer पर नहीं डाला जा सकता। बीमाकर्ता कंपनी नियोक्ता के साथ संयुक्त रूप से और अलग-अलग मुआवज़ा देने के लिए उत्तरदायी है। जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की डीविजन बेंच ने कलकत्ता हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसने बीमाकर्ता कंपनी को पीड़ित कर्मचारी को मुआवज़ा देने की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया था। यह फैसला उस बीमा अनुबंध के बावजूद आया था जो कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम 1923 के तहत बीमाकर्ता को ऐसे मुआवज़े के लिए उत्तरदायी बनाता है।
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कर्मकार मुआवज़ा आयुक्त का फैसला, जिसे हाई कोर्ट ने पलटा
प्रकरण की सुनवाई करते हुए कर्मकार मुआवज़ा आयुक्त ने नियोक्ता और बीमाकर्ता दोनों को संयुक्त रूप से और अलग-अलग मुआवज़ा देने का आदेश दिया था। कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस आदेश को संशोधित करते हुए केवल नियोक्ता को उत्तरदायी ठहराया था। जिसके बाद नियोक्ता बीमाकर्ता से प्रतिपूर्ति की मांग कर सकता था।
सुप्रीम फैसला: बीमा कंपनी क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी होगा
हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ नियोक्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट जे डीविजन बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए आयुक्त के मूल आदेश को बहाल कर दिया।
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डीविजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि नियोक्ता और बीमाकर्ता के बीच बीमा अनुबंध हुआ है, वहाँ बीमाकर्ता नियोक्ता को क्षतिपूर्ति देने के लिए उत्तरदायी होगा।” कोर्ट ने कहा, “वर्तमान मामले में इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि बीमाकर्ता ने बीमित व्यक्ति (यानी, नियोक्ता) को क्षतिपूर्ति करने की जिम्मेदारी ली और अपनी देनदारी से बाहर निकलने का कोई अनुबंध नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, जताई नाराजगी, 50 हजार लगाया जुर्माना
सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कंपनियों द्वारा बीमा अनुबंधों के तहत अपनी देनदारी से बचने और लाभार्थी को समय पर मुआवज़ा जारी करने में देरी करने के लिए तकनीकी आधारों पर अपील दायर करने की प्रथा पर भी चिंता के साथ ही नाराजगी भी व्यक्त की। खासकर जब वे बीमा अनुबंध के तहत अपनी अंतिम देनदारी से इनकार नहीं करती हैं। चूँकि पहले बीमा कंपनी ने अनावश्यक रूप से हाई कोर्ट के समक्ष अपील दायर की और इस कारण लाभार्थी के पक्ष में समय पर मुआवज़ा जारी नहीं हो सका, सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कंपनी को निर्देश दिया है कि बीमाधारक को 50,000 का हर्जाना दे।
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है हाई कोर्ट ने भी अति-तकनीकी दृष्टिकोण अपनाते हुए कर्मचारी (दावेदार) के नुकसान के लिए आयुक्त द्वारा पारित अवार्ड को संशोधित करते समय 1923 अधिनियम की धारा 19 के प्रावधानों को नजरअंदाज कर दिया है। कोर्ट ने कहा, बीमा अनुबंध के तहत बीमा कंपनी की देनदारी को लेकर कोई विवाद नहीं था।








