अंबिकापुर | सूर्य उपासना के महापर्व पर छत्तीसगढ़ अंबिकापुर के साइंटिस्ट डा प्रशांत शर्मा के नवाचार ई-बाल से तालाबों के घाट निर्मल हो रहे हैं।अंबिकापुर सहित उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ और बिहार के गया तक जलाशय व तालाब के पानी को स्वच्छ रखने के लिए ई-बाल का उपयोग हो रहा है।
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छठ पर्व सूर्य उपासना का महापर्व है, जिसमें स्वच्छता और पवित्रता का विशेष महत्व होता है। व्रतियों द्वारा सूर्यदेव की आराधना के लिए उपयोग किए जाने वाले जलाशयों,नदी, तालाब और घाटों का साफ-सुथरा रहना अत्यंत आवश्यक होता है। इस दिशा में अंबिकापुर के वैज्ञानिक डा प्रशांत शर्मा का अनूठा प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा रहा है।

डा शर्मा द्वारा विकसित ई-बाल इस बार न केवल अंबिकापुर के तालाबों में जल को स्वच्छ बनाने में प्रयोग किया जा रहा है, बल्कि उत्तर प्रदेश के अलीगढ़, बनारस, लखनऊ और बिहार के गया जैसे शहरों के छठ घाटों पर भी इसका उपयोग हो रहा है। छठ महापर्व पर धार्मिक आस्था को देखते हुए अंबिकापुर से डा शर्मा ने इन राज्यों के विभिन्न घाटों के लिए 6000 ई बाल निश्शुल्क भेजे हैं ताकि छठ पर्व से पहले श्रद्धालुओं को स्वच्छ और पवित्र जल मिल सके।
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डा शर्मा ने बताया कि इन स्थानों से उन्हें स्वयं फोन पर संपर्क कर ई-बाल मंगवाए गए थे, और सभी स्थानों पर समय रहते इसे पहुंचा दिया गया है। वर्ष 2013 में डा प्रशांत शर्मा ने ई-बाल तकनीक को विकसित किया था। सबसे पहले इसका प्रयोग अंबिकापुर के एक तालाब में किया गया था,जब इसके उत्कृष्ट परिणाम देखने को मिले। धीरे-धीरे यह तकनीक देश के कई राज्यों में अपनाई जाने लगी।

ई-बाल का वजन 10 से 12 ग्राम
एक ई-बाल का वजन लगभग 10 से 12 ग्राम होता है, और इसमें करीब छह करोड़ सूक्ष्मजीव मौजूद रहते हैं। ये सूक्ष्मजीव पानी में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया, फफूंद और अन्य जैविक प्रदूषकों को नष्ट कर देते हैं। इसके परिणामस्वरूप तालाबों, नदियों और अन्य जलाशयों का पानी प्राकृतिक रूप से साफ और स्वच्छ हो जाता है। डा शर्मा बताते हैं कि इस बाल में उपस्थित विशेष एंजाइम और लाभकारी बैक्टीरिया मिलकर जल के बायो-रीएक्टर की तरह काम करते हैं। यह न केवल दुर्गंध और प्रदूषण कम करता है बल्कि पानी में आक्सीजन स्तर भी बढ़ाता है, जिससे जलीय जीवों के लिए भी अनुकूल वातावरण बनता है।डा प्रशांत शर्मा का यह नवाचार अब स्वच्छता अभियान से भी जुड़ गया है।
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देश के कई हिस्सों में नगर निकाय और पर्यावरण संगठनों द्वारा ई-बाल को जलशुद्धिकरण के एक सस्ते और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प के रूप में अपनाया जा रहा है। छठ पर्व के अवसर पर इस बार भी ई-बाल का उपयोग यह दर्शाता है कि स्थानीय नवाचार कैसे राष्ट्रीय उपयोगिता साबित कर सकते हैं।डा शर्मा के इस प्रयास से न केवल अंबिकापुर का नाम रोशन हुआ है, बल्कि यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक प्रेरक उदाहरण भी बन गया है।

ऐसे काम करता है ई-बाल
डा प्रशांत शर्मा ने बताया कि ई-बाल 14 प्रकार के लाभदायक बैक्टीरिया और फंगस का मिश्रण (कंसोर्डिया) है जिसे बुझा चूना (कैलिशयम कार्बोनेट) पाउडर में बनाया जाता है।एक बाल में पानी को साफ करने वाले लगभग छह करोड़ सूक्ष्मजीव (लाभदायक बैक्टेरिया और फंगस) होते हैं।ये सूक्ष्मजीव ई-बाल के माध्यम से तालाबों और नालियों में जाते ही पानी मे घुल जाते है और पानी में पाए जाने वाले ऐसे सूक्ष्म जीव जो पानी मे सड़न करके पानी को प्रदूषित करते है उन्हें नष्ट करते हैं। ई-बाल में पाए जाने वाले लाभदायक सूक्ष्म जीव पानी मे पाए जाने वाले अशुद्धियों (कार्बन और नाइट्रोजन) को भोजन के रूप में लेकर लगातार अपनी संख्या को बढ़ाते हैं और पानी को साफ करते हैं।
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ई-बाल पानी की पीएच, टीडीएस, बीओडी और सीओडी लेबल में सुधार करके पानी की गुणवत्ता को ठीक करता है।डा शर्मा ने बताया ई बाल में पाए जाने वाले लाभदायक सूक्ष्मजीव से किसी भी जलीय जीव जंतु और पौधों को कोई नुकसान नही होता है यह पूर्णतः जैविक होता है।

मात्र दो रुपये आता है खर्च
एक ई-बाल बनाने में मात्र दो रुपये का खर्च आता है।इसे आसानी से महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण देकर बनवाया जाता है। ये महिलाएं शासकीय बायोटेक लैब में अलग-अलग विधाओं का प्रशिक्षण प्राप्त करती हैं। इसी दौरान ई-बाल का निर्माण भी करती हैं। अलग-अलग क्षेत्र से आए मांग के अनुसार ई-बाल उपलब्ध कराया जाता है। इसके एवज में नगरीय निकायों से सहयोग राशि प्राप्त होती है। उसे महिला स्वयं सहायता समूह को प्रदान कर दिया जाता है। शासकीय तौर पर इसके निर्माण के लिए कोई राशि उपलब्ध नहीं की जाती है।








