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Bilaspur High Court: बेटे ने SIT जांच की मांग को लेकर हाई कोर्ट में दायर की याचिका।
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बिलासपुर। सुरक्षा बलों के हाथों मारे गए 40 लाख के ईनामी नक्सली नेता राजू दादा उर्फ ​​कट्टा रामचंद्र रेड्डी उर्फ ​​गुडसा उसेंडी उर्फ ​​विजय उर्फ ​​विकल्प करीमनगर, तेलंगाना निवासी के बेटे राजा चन्द्र ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर पिता की हत्या कर सुरक्षा बलों द्वारा फर्जी मुठभेड़ की आशंका जताते हुए एसआईटी जांच और मुआवजा देने की मांग की है। रिट याचिका की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीड़ी गुरु की डीविजन बेंच में हुई। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दोनों मांगो को सिरे से खारिज कर दिया है।

राजा चंद्र निवासी ग्राम थेगलकुंटपल्ली, तहसील (मंडल) कोहेड़ा, पुलिस स्टेशन कोहेड़ा, जिला सिद्दीपेट, तेलंगाना ने वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस, किशोर नारायण और माणिक गुप्ता के माध्यम से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर की थी। फर्जी मुठभेड़ की एसआईटी जांच की मांग की थी। याचिका के अनुसार उसके पिता कथा रामचंद्र रेड्डी को सुरक्षा बलों ने फर्जी मुठभेड़ में मार डाला है। एसआईटी द्वारा की जाने वाली जांच की निगरानी न्यायालय द्वारा करने की मांग की थी। राज्य और पुलिस प्राधिकारियों द्वारा उसके पिता की हत्या के लिए उचित अनुकरणीय मौद्रिक मुआवजा की भी मांग याचिका में कई गई थी।

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क्या है याचिका में


याचिकाकर्ता मृतक कथा रामचंद्र रेड्डी उर्फ ​​कट्टा रामचंद्र रेड्डी उर्फ ​​विकल्प उर्फ ​​राजू दादा का पुत्र और मृतक कादरी सत्यनारायण रेड्डी उर्फ ​​कोसा दादा का पारिवारिक मित्र है। इन दोनों को पुलिस ने 22 सितंबर 2025 को एक फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 22 सितंबर 2025 की सुबह से ही माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच रुक-रुक कर गोलीबारी हो रही थी। गोलीबारी के बाद, मौके से हथियार, विस्फोटक और नक्सली साहित्य के साथ दो पुरुष माओवादी कैडरों के शव बरामद किए गए। दोनों शवों की पहचान राजू दादा उर्फ ​​कट्टा रामचंद्र रेड्डी उर्फ ​​गुडसा उसेंडी उर्फ ​​विजय उर्फ ​​विकल्प, उम्र लगभग 63 वर्ष, मल्ला रेड्डी के पुत्र, करीमनगर, तेलंगाना निवासी और कोसा दादा उर्फ ​​कदारी सत्यनारायण रेड्डी उर्फ ​​गोपन्ना, उम्र लगभग 67 वर्ष, कृष्णा रेड्डी के पुत्र, करीमनगर, तेलंगाना निवासी के रूप में हुई है। बताया गया है कि ये दोनों व्यक्ति माओवादियों की केंद्रीय समिति के सदस्य हैं और इन पर 40 लाख रुपये का इनाम है। याचिकाकर्ता को उपरोक्त तथ्यों की जानकारी मीडिया रिपोर्टों और अपने सूत्रों से मिली। मृतक कथा रामचंद्र रेड्डी उनके पिता हैं और मृतक कादरी सत्यनारायण रेड्डी उनके पारिवारिक मित्र हैं।

याचिकाकर्ता के वकील गोंसाल्वेस ने दलील दी कि याचिकाकर्ता को आशंका है कि उसके पिता कट्टा रामचंद्र रेड्डी की पुलिस ने निर्मम हत्या कर दी और बाद में मुठभेड़ की झूठी कहानी गढ़ी गई। याचिकाकर्ता की आशंका इस तथ्य से उत्पन्न होती है कि कथित तौर पर यह मुठभेड़ माओवादियों और सुरक्षा बलों के सदस्यों के बीच हुई थी। दोनों पक्षों में सैकड़ों की संख्या में लोग थे और मुठभेड़ के बाद केवल दो लोग मारे गए, और वे माओवादियों की केंद्रीय समिति के सदस्य थे। आमतौर पर, उच्च पदस्थ माओवादी नेता को कई अन्य माओवादियों द्वारा संरक्षित और घिरा हुआ रखा जाता है। यह अत्यधिक संदिग्ध है कि तथाकथित मुठभेड़ में कोई अन्य माओवादी या सुरक्षा बल नहीं मरा या घायल नहीं हुआ।

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खुलासे के दो दिन बाद मुठभेड़ में मारा गया


इसके अलावा, 17 सितंबर 2025 को मुठभेड़ के समय के कारण संदेह पैदा होता है, एक पोलित ब्यूरो सदस्य कॉमरेड सोनू द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई थी जिसमें कहा गया था कि बदलती परिस्थितियों के कारण, माओवादी सशस्त्र संघर्ष को छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होना चाहते हैं। इसके बाद, 20 सितंबर .2025 को विकल्प नामक एक व्यक्ति द्वारा एक और प्रेस विज्ञप्ति दी गई, जिसे माओवादी पार्टी का प्रवक्ता बताया गया है। पुलिस के अनुसार, मृतक कट्टा रामचंद्र रेड्डी माओवादी पार्टी का प्रवक्ता था और उसके द्वारा दूसरी प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई जिसमें कहा गया कि पिछली प्रेस विज्ञप्ति माओवादियों द्वारा जारी नहीं की गई थी और उनका सशस्त्र संघर्ष छोड़ने का इरादा नहीं था। प्रेस विज्ञप्ति के दो दिन बाद, मृतक कट्टा रामचंद्र रेड्डी कथित तौर पर एक मुठभेड़ में मारा गया। परिस्थिति और समय से संकेत मिलता है कि पुलिस ने मृतकों को उनके ही दल के सदस्यों की मदद से ज़िंदा पकड़ा था, जिन्होंने पुलिस को उनका पता लगाने में मदद की थी। मृतकों को पकड़े जाने, हिरासत में लेने के बाद, उन्हें जंगल में ले जाया गया होगा और सुरक्षा बलों और पुलिस ने उनकी हत्या कर दी होगी।

अधिवक्ता गोंसाल्वेस ने आगे दलील दी है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और बैलिस्टिक रिपोर्ट के साक्ष्यों को सुरक्षित रखना ज़रूरी है ताकि यह पता लगाया जा सके कि मुठभेड़ फ़र्ज़ी थी या असली। याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक, नारायणपुर के ज़िला कलेक्टर और कोंडागांव के प्रधान ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश को ज्ञापन देकर अनुरोध किया है कि वे पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम महाराष्ट्र राज्य (2014) 10 SCC 635 में दिए गए दिशानिर्देशों का पालन करें। हालाँकि, प्रतिवादी अधिकारी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं।

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चिकित्सकों की टीम से पीएम कराने व वीडियोग्राफी की भी मांग


याचिकाकर्ता का आरोप है कि उसके पिता की राज्य द्वारा प्रबंधित एक मुठभेड़ में हत्या कर दी गई थी, लेकिन इसे औपचारिक प्राथमिकी में दर्ज नहीं किया गया है। याचिकाकर्ता का यह भी मानना ​​है कि सुरक्षा बल और पुलिस अधिकारी मामले को दबाने के लिए सबूतों से छेड़छाड़ कर रहे हैं। याचिकाकर्ता को एक व्यक्ति का मोबाइल कॉल आया, जो कथित तौर पर नारायणपुर पुलिस स्टेशन या पुलिस अधीक्षक कार्यालय में तैनात एक निरीक्षक है। उसने बताया कि उसके पिता का शव सरकारी मुर्दाघर में रखा गया है। पुलिस कर्मियों ने यह नहीं बताया है कि सुरक्षा बलों द्वारा उसके पिता की हत्या के याचिकाकर्ता के आरोप पर कार्रवाई की गई है या नहीं। याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों की मांग थी कि उनकी उपस्थिति में जाँच-पड़ताल की जाए और जाँच-पड़ताल के दौरान उनके बयान भी दर्ज किए जाएँ और जाँच रिपोर्ट तैयार करते समय उन्हें ध्यान में रखा जाए। याचिकाकर्ता की यह भी मांग थी कि शवों का पोस्टमार्टम मेडिकल कॉलेज जगदलपुर के फोरेंसिक विभागाध्यक्ष के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक टीम द्वारा किया जाए। ऐसे पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी की जानी चाहिए तथा वीडियोग्राफी की प्रति न्यायालय में दाखिल की जानी चाहिए तथा उसकी एक प्रति याचिकाकर्ता या उसके वकील को दी जानी चाहिए।

मृतक के शरीर पर गोली नही, चोंट के मिले निशान


अधिवक्ता गोंसाल्वेस ने याचिकाकर्ता की ओर से दायर अतिरिक्त हलफनामे और लिखित दलीलों के आधार पर दलील दी कि मृतक 2007 में घर से चला गया था और उसके बाद उसके परिवार वालों ने उसे कभी नहीं देखा। 24 सितंबर 2025 को, याचिकाकर्ता की माँ द्वारा कलेक्टर, नारायणपुर से बार-बार अनुरोध करने पर, उन्हें मृतक का शव देखने की अनुमति दी गई। शव देखने पर, बाईं पलक की त्वचा गायब थी, छाती की त्वचा उखड़ी हुई थी और जली हुई लग रही थी, पेट पर चोट के निशान थे और शरीर के अन्य हिस्सों पर धारदार हथियार से वार के निशान थे। शरीर पर गोली का कोई घाव नहीं देखा गया। याचिकाकर्ता की मां को शरीर का केवल ऊपरी आधा हिस्सा देखने की अनुमति थी और ये परिस्थितियां स्पष्ट रूप से इंगित करती हैं कि याचिकाकर्ता के पिता को यातना दी गई थी और सुरक्षा बलों और पुलिस द्वारा मार दिया गया था जिसे बाद में मुठभेड़ का रंग दिया गया था। भले ही मृतक नक्सली या प्रतिबंधित माओवादी संगठन का सदस्य था, पुलिस, सुरक्षा कर्मियों को मृतक को प्रताड़ित करने के बाद क्रूर तरीके से मारने का कोई अधिकार नहीं था।

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डेढ़ घण्टे तक चला पीएम, सिर्फ 10 मिनट की वीडियोग्राफी


अधिवक्ता गोंसाल्वेस ने यह भी प्रस्तुत किया कि हालांकि पोस्टमॉर्टम लगभग एक घंटा 30 मिनट तक किया गया था, लेकिन उक्त पोस्टमॉर्टम की वीडियोग्राफी केवल 10 मिनट की है जिसमें पोस्टमॉर्टम की पूरी प्रक्रिया शामिल नहीं है और इसलिए यह संदिग्ध है। ।याचिकाकर्ता ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का अक्षरशः पालन करने की मांग की।

महाधिवक्ता ने रखा सरकार का पक्ष


महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत व अतिरिक्त महाधिवक्ता वाईएस.ठाकुर ने कहा, । 20 सितंबर 2025 को माओवादियों और उनके शीर्ष स्तर के नेताओं की उपस्थिति की विशिष्ट खुफिया जानकारी के आधार पर, अबूझमाड़ क्षेत्र में तलाशी अभियान के लिए एक पुलिस दल भेजा गया था। 22. सितंबर 2025 को सुबह लगभग 09:00 बजे सुरक्षा बलों और 20-25 नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई। बाद में तलाशी लेने पर, दो पुरुष माओवादियों के शव बड़ी संख्या में हथियारों के साथ बरामद किए गए जिनमें एक एके-47 राइफल, एक इंसास राइफल, एक बीजीएल लांचर और अन्य सामान शामिल थे। शवों की एफएसएल जांच के लिए प्रभारी, सीन ऑफ क्राइम मोबाइल यूनिट, जिला कांकेर को पत्र भेजा गया। माओवादी के शव की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफ के लिए फोटोग्राफर उपलब्ध कराने हेतु रिजर्व इंस्पेक्टर को पत्र भेजा गया। कार्यकारी मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में जांच कार्यवाही की गई। जिला अस्पताल नारायणपुर में डॉक्टरों की एक टीम द्वारा वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी के साथ पोस्टमार्टम किया गया।

महाधिवक्ता ने कहा, मुठभेड़ में मारे गए लोग नक्सली समूह के सदस्य थे


महाधिवक्ता ने दलील दी है कि मुठभेड़ में मारे गए लोग नक्सली समूह के सदस्य हैं, जिनका विभिन्न राज्यों में आपराधिक रिकॉर्ड है। छत्तीसगढ़ राज्य में मृतक के. रामचंद्र रेड्डी के 29 आपराधिक रिकॉर्ड थे, तेलंगाना में 2 और महाराष्ट्र में 6। माओवादियों की रणनीति में आए हालिया बदलाव के अनुसार, अब वे सुरक्षा बलों के संपर्क से बचने के लिए छोटे-छोटे समूहों में बंट गए हैं ताकि अपने ऑपरेशनल नुकसान को कम से कम कर सकें। इसके अलावा, ऐसी भी खबरें हैं कि निचले स्तर के कैडर अब सुरक्षा बलों से मुठभेड़ के समय वरिष्ठ अधिकारियों सहित अपने साथियों को छोड़कर भाग रहे हैं।

मृतक कट्टा रामचंद्र रेड्डी के शव को रखा है सुरिक्षत


मृतक कादरी सत्यनारायण रेड्डी का शव उसके रिश्तेदार ले गए और बिना किसी विरोध के उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। मुठभेड़ में जब्त किए गए हथियारों को बैलिस्टिक जांच के लिए राज्य एफएसएल को भेज दिया गया है। एसएफएसएल की रिपोर्ट के अनुसार, जब्त किए गए हथियार सक्रिय स्थिति में पाए गए हैं और इनसे पहले भी फायर किया जा चुका है। नाइट्रेट परीक्षण की राय नकारात्मक रही है और फायरिंग दूर से की गई है। मृतक कट्टा रामचंद्र रेड्डी और मृतक कादरी सत्यनारायण रेड्डी के हाथों के रुई के फाहे की जांच करने पर फायरिंग के अवशेष पाए गए हैं। पुलिस मुठभेड़ में मौत के मामले में एनएचआरसी द्वारा जारी व्यापक दिशानिर्देशों का अक्षरशः पालन किया जा रहा है। प्रारंभिक रिपोर्ट (24 घंटे के भीतर) और विस्तृत रिपोर्ट (72 घंटे के भीतर) पहले ही एनएचआरसी को भेज दी गई है। इसके अलावा, 26 सितंबर 2025 को जारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, मृतक कट्टा रामचंद्र रेड्डी के शव को इस न्यायालय से आदेश प्राप्त होने तक संरक्षित रखा गया है।

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सुप्रीम कोर्ट ने ये दिया है निर्देश


हाई कोर्ट में याचिकादायर करने से पहले, याचिकाकर्ता ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। 26 सितंवर.2025 को याचिका का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ इस तरह जारी किया था निर्देश।

  • जब तक उच्च न्यायालय रिट याचिका पर निर्णय नहीं ले लेता या अंतरिम चरण में उचित आदेश पारित नहीं कर देता, तब तक याचिकाकर्ता के पिता के शव का अंतिम संस्का, दफन नहीं किया जाएगा या किसी अन्य तरीके से उसका निपटान नहीं किया जाएगा।
  • आगामी पूजा, दशहरा अवकाश के बाद उच्च न्यायालय के न्यायिक कार्य पर पुनः लौटने पर याचिका पर तुरंत सुनवाई की जाए।
  • प्रतिवादियों से कोई हलफनामा नहीं मांगा गया है, इसलिए उनके खिलाफ रिट याचिका में लगाए गए आरोपों को स्वीकार नहीं माना जाएगा।
  • सभी गुण-दोष संबंधी बिंदुओं को उच्च न्यायालय के समक्ष निर्णय के लिए खुला रखा गया है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हाई कोर्ट में हुई सुनवाई

  1. सितंबर 2025 को इस याचिका के दाखिल होने के बाद, यह मामला 06 अक्टूबर .2025 को हाई कोर्ट के समक्ष सुनवाई के लिए आया, जिस दिन इस न्यायालय ने प्रतिवादियों/राज्य को आपराधिक कृत्य को विशेष रूप से इंगित करते हुए रिटर्न दाखिल करने का निर्देश दिया।
    विभिन्न राज्यों में नक्सली गतिविधियों में मृतक के पूर्ववृत्, संलिप्तता की जाँच करने और मुठभेड़ के तुरंत बाद और मृतक का शव उसके परिजनों को सौंपने से पहले राज्य द्वारा उठाए गए कदमों, अपनाए गए प्रोटोकॉल के संबंध में इस न्यायालय को सूचित करने का निर्देश दिया गया था। इस मामले को 13.अक्टूबर 2025 को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया था। कल जब मामले की सुनवाई हुई, तो चूँकि याचिकाकर्ता द्वारा दायर प्रत्युत्तर रिकॉर्ड में नहीं था, इसलिए मामले को आज फिर से सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया और इस प्रकार, आज मामले की अंतिम सुनवाई हुई।। इसमें कोई दो राय नहीं कि मृतक 2007 में घर छोड़ने के दिन से ही अपने परिवार के संपर्क में नहीं था। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि मृतक एक नक्सली था और उसके खिलाफ छत्तीसगढ़ राज्य में 29, तेलंगाना राज्य में 2 और महाराष्ट्र राज्य में 6 मामले दर्ज हैं।

याचिकाकर्ता की मां विषय विशेषज्ञ नहीं हैं और न ही रिकॉर्ड में ऐसी कोई सामग्री है

कोर्ट ने कहा, याचिका में दिए गए तर्कों और दलीलों से यह स्पष्ट है कि यह याचिकाकर्ता और उसकी मां की महज धारणा है कि मृतक को पुलिस या सुरक्षा कर्मियों द्वारा यातना दी गई और उसके बाद निर्मम तरीके से उसकी हत्या कर दी गई और मुठभेड़ की एक फर्जी कहानी गढ़ी गई है। उनके विश्वास का एक और आधार यह है कि याचिकाकर्ता की मां ने मृतक के शरीर पर कई चोटें देखीं, जिससे उन्हें संदेह हुआ कि उक्त चोटें मुठभेड़ के दौरान नहीं लगी होंगी और यह संभव है कि पुलिसकर्मियों ने जानबूझकर ऐसा किया हो। याचिकाकर्ता की मां विषय विशेषज्ञ नहीं हैं और न ही रिकॉर्ड में ऐसी कोई सामग्री है जो यह साबित करे कि मृतक को पहले हिरासत में लिया गया, फिर उसे प्रताड़ित किया गया और उसके बाद उसकी हत्या कर दी गई। यह महज याचिकाकर्ता और उसकी मां की धारणा है। राज्य द्वारा दाखिल रिटर्न विस्तृत है और उन्होंने मुठभेड़ से पहले और बाद में हुई घटनाओं का क्रम बताया है। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों और एनएचआरसी द्वारा जारी दिशानिर्देशों का भी पालन किया गया है। मृतक के आपराधिक इतिहास का विस्तार से उल्लेख किया गया है, जिसके संबंध में याचिकाकर्ताओं ने कोई खंडन नहीं किया है। केवल मृतक के शरीर पर कुछ चोटों के निशान के आधार पर, पुलिस और माओवादी के बीच हुई मुठभेड़ को न्यायेतर हत्या नहीं माना जा सकता। भले ही कोई पुलिसकर्मी घायल न हुआ हो, इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि ऐसी कोई मुठभेड़ हुई ही नहीं थी।

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कोर्ट ने ये कहा
नक्सल-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में मुठभेड़ें सैन्य शैली की उग्रवाद-विरोधी कार्रवाई होती हैं। अचानक या बेहतर सामरिक स्थिति के कारण कुछ मौतें या एकतरफा हताहत होना असामान्य नहीं है। इसलिए, पुलिस हताहतों का न होना अपने आप में झूठ का संकेत नहीं हो सकता।
0। याचिकाकर्ता को अपने पिता की गतिविधियों, ठिकाने या स्थिति के बारे में कोई व्यक्तिगत जानकारी नहीं थी, और उसका दावा पूरी तरह से मीडिया रिपोर्टों और अटकलों पर आधारित है।

  • राज्य या केंद्रीय सुरक्षा बलों द्वारा किए जाने वाले नियमित उग्रवाद-रोधी उपायों का हिस्सा होने के नाते, नक्सल-विरोधी अभियानों की एसआईटी द्वारा जाँच नहीं की जा सकती, जैसा कि याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया है, जब तक कि असाधारण परिस्थितियाँ इस तरह के हस्तक्षेप की आवश्यकता न हों। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था बनाए रखने और उग्रवाद से निपटने के उद्देश्य से सुरक्षाकर्मियों द्वारा किए जाने वाले नियमित अभियान राज्य पुलिस बलों और वैध प्राधिकार के तहत काम करने वाली केंद्रीय अर्धसैनिक एजेंसियों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। ऐसे नियमित क्षेत्रीय अभियानों की एसआईटी द्वारा जाँच का निर्देश देना न केवल पुलिसिंग शक्तियों के संघीय ढाँचे को कमजोर करेगा, बल्कि स्थापित मानदंडों के साथ असंगत एक मिसाल भी स्थापित करेगा। वर्तमान मामले में ऐसी कोई परिस्थिति मौजूद नहीं है। इसलिए, याचिकाकर्ता को ऐसी कोई राहत नहीं दी जा सकती।

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